Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद आजीविकोंके साथ ही बांध दिया है और जो नग्न सो आजीवक' ऐसी ब्याप्ति सी बनाकर दिगम्बर जैनोंको ही गोशालकका अथवा आजीविकोंका उत्तराधिकारी सिद्ध कर डाला है।
आजीविक और दिगम्बर आजीविकों और दिगम्बरोंमें तीन बातोंको लेकर समानता पाई जाती है - दोनों नग्न रहते थे, दोनों हस्तभोजी थे और दिगम्बरोंकी तरह शायद आजीविक भी केशलुच करते थे। इस नग्नताके कारण किन्हीं किन्हीं ग्रन्थकारोंको भी दोनों की एकतामें भ्रम हो गया, ऐसा प्रतीत होता है । और उसी भ्रमके आधार पर कल्पनाओं और अनुमानोंका ताना बाना बुनकर बीसवीं शतीके कतिपय अन्वेषक विद्वानोंने आजीविकोंको दिगम्बर जैनोंका पूर्वज मान लिया, जिनमें डा० हानलेका नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने लिखा है कि सूत्र कृतागंकी टीकामें शीलांकने आजीविकों त्रैराशिकों
और दिगम्बरोको एक बतलाया है। किन्तु उनका यह कथन भ्रमपूर्ण है । शीलाकंके दो वाक्य इस प्रकार हैं
१ श्राजीविकादीनां परतीथिकानां दिगम्बराणां चासदाचारनिरूपणयाह
२ ते गोशालकमतानुसारिणो दिगम्बरा वा...", अ०३,उ० ३, गा० १७ की टीका ।
पहले वाक्यका अर्थ है-'आजीविक' आदि परतीर्थिकों और दिगम्बरोंके असदाचारका निरूपण करनेके लिये कहते हैं।'
इस वाक्यमें स्पष्ट ही आजीविकों और दिगम्बरोंको एक नहीं बतलाया । यदि 'परतीर्थकानां' पदको 'दिगम्बराणां के साथ भी लगाया जाये तो अर्थ होगा- 'आजीविक आदि और दिगम्बर परतीर्थिकोंके। सूत्र कृतांगके हिन्दी टीकाकारने यही अर्थ किया
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