Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
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सूत्र० (२ श्रु० ७ अ० ) में बतलाया है कि उदक पेढालपुत्र नामक पार्श्वपत्यीय निर्ग्रन्थ गौतम स्वामीसे आकर बोला- हे गौतम ! कुमारपुत्र नामके आपके एक निर्ग्रन्थ नियम ग्रहण करनेके लिये आये हुए श्रावकोंसे इस प्रकार त्याग कराते हैं
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'राजा आदिके अभियोगोंको छोड़कर त्रस प्राणियों को दण्ड देनेका त्याग है । यह त्याग कराना ठीक नहीं है क्योंकि इस प्रकार त्याग करानेवाले पुरुष अपनी प्रतिज्ञाका उल्लंघन करते हैं । और इसका कारण यह है कि प्राणी परिवर्तनशील है इसलिये स्थावर प्राणी भी कभी त्रसप्राणी हो जाता है और सप्राणी स्थावर रूप में उत्पन्न होता है । अतः जब वे सप्राणी स्थावर रूप में उत्पन्न होते हैं तो वे सकायको दण्ड न देनेकी प्रतिज्ञा करने वालों द्वारा घात करनेके योग्य हो जाते हैं । अतः उनका त्याग ठीक नहीं कहलाया; क्योंकि जिसको घात न करनेका उन्होंने नियम लिया था, वे ही सजीव स्थावर पर्याय में उनके द्वारा घाते जाते हैं ।'
उक्त शंकाका समाधान करने पर उदक पुन: उसी प्रश्नको पूकारान्तर से पूछता है - हे गौतम! ऐसी एक भी पर्याय नहीं है जिसके घातका त्याग श्रावक कर सके; क्योंकि प्राणी परिवर्तनशील है, कभी स्थावर त्रस हो जाते हैं और कभी त्रस स्थावर हो जाते हैं । वे सबके सब जब स्थावर कायमें उत्पन्न हो जाते हैं तो श्रावकों के घातके योग्य होते हैं।
इस प्रकार के प्रश्न पार्थ्यापत्ययोंकी उस प्रकृति और स्थिति पर प्रकाश डालते हैं जो गोशालककी मनःस्थिति से मिलती हुई है। अब प्रकृत स्त्री भोगके विषय में पार्श्वस्थोंकी वाचालताका
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