Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
संघ भेद
४४९
हस्तभोजन है और न केशलु च हैं । उसके कतिपय नियम निम्न प्रकार हैं
१ एक साधुको कुछ भी संचय नहीं रखना चाहिये । अर्थात् अपरिग्रही होना चाहिये ।
२ ब्रह्मचारी होना चाहिये ।
३ वर्षाऋतु में उसे अपना स्थान परिवर्तन नहीं करना चाहिये । ४ उसे केवल भिक्षा के लिये ही ग्राममें जाना चाहिये ।
५ मनुष्यों के भोजन कर चुकनेके पश्चात् ही उसे भिक्षा माँगनी चाहिये । ( जैन मुनि पहले जाते हैं ) ।
६ सब प्रकारकी इच्छाओं को रोकना चाहिये ।
७ उसे अपनी नग्नता छिपाने के लिये एक वस्त्र धारण करना चाहिये ।
८ बौद्धायनके अनुसार उसे एक पीतपट पहिनना चाहिये । ६ उसे पौदों और वृक्षोंका कोई भाग नहीं लेना चाहिये, सिवाय उसके जो स्वतः अलग हो गया हो ।
१० एक गाँव में एक ही रात रहना चाहिये ।
११ उसे या तो बाल कटाना चाहिये या जटाजूट रखना चाहिये ! १२ उसे बीजोंको नष्ट नहीं करना चाहिये ।
१३ जल छाननेका वस्त्र रखना चाहिए । १४ एक लकड़ी रखना चाहिये ।
१५. जो भोजन, बिना कहे, बिना पूर्व तैयारीके, अचानक प्राप्त हो जाये वही साधुको ग्रहण करना चाहिये और उतना ही ग्रहण करना चाहिये जितना जीवन धारण के लिये आवश्यक हो ।
गौतम धर्मसूत्र और बौद्धायन धर्मसूत्र बद्धसे प्राचीन हैं ऐसा कतिपय विद्वानों का मत है। इसलिये बौद्धधर्मने उनका अनुकरण
२६
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org