Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पोटिका अपने नंगे रहने, केश लोच करने और हाथमें भोजन करनेका निर्देश किया है और ये सब आचार दिगम्बर निग्रन्थ साधुके हैं। अतः बुद्ध के समयमें तथा उससे पहले भी नंगे निम्रन्थ थे, यह प्रमाणित होता है। ___ मज्झिम निकायके महासचक सुत्तंत (पृ० १४४ ) में सच्चक निगंठपुत्तने ठीक वही आचार. जो बुद्धने पाला था-आजीविकोंका बतलाया है। जिसके सम्बन्धमें डा० याकोबी यह संभावना करते हैं कि महावीरने उन नियमोंको अचेलकों अथवा आजीविकोंसे लिया। आजीविकोंके सम्बन्धमें प्रकाश डालते हुए यह बतलाया है कि बौद्ध साहित्यमें जहाँ कहीं आजीविकोंका वर्णन है वहाँ आजीविकोंसे गोशालकके अनुयायी अभिप्रेत है। गोशालक ही आजीविक सम्प्रदायका संस्थापक था और वह बुद्धका समकालीन था। अतः बुद्धने अपने जीवनके पूर्व भागमें यदि उक्त कठोर तपश्चरण किया था तो निश्चय ही उन्होंने आजीविकोंको प्रव्रज्या नहीं ली थी, क्योंकि उस समय आजीविक नहीं थे। किन्तु निग्रन्थ सम्प्रदाय बुद्धसे पहले भी वर्तमान था। और एक जैन उल्लेखके अनुसार बुद्धने उस निग्रन्थ सम्प्रदायके एक आचार्यसे प्रव्रज्या धारण की थी। ___ यदि जरा देरके लिये यह मान लिया जाये कि उक्त कठोर
आचरण आजीविकोंका था तो प्रश्न होता है कि उन्होंने यह कठोर प्राचार किससे लिया, क्योंकि डा० याकोवीने जैन सूत्रोंकी प्रस्तावनामें ( सं० बु० ई०, जि० २२, पृ० ३४ आदि) यह लिखा है कि जैनों और बौद्धोंने अपने साधु धर्मके आचार गौतम धर्म सूत्र और बौद्धायन धर्म सूत्रसे लिये हैं।
उक्त धर्मसूत्रों के नियमोंमें न तो नग्न रहनेका विधान है, न
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