Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
४४७ अंगुत्तर निकायमें तो 'निग्गंठा एकसाटका 'लिखकर निग्रन्थों को एकशाटक बतलाया है। किन्तु बुद्धघोषने दीघनिकायकी टीकामें तथा धम्मपदकी टीका में, जिसका उल्लेख डा० याकोवीने अपने लेखमें किया है, निग्रन्थोंको गुह्यांग मात्र ढाकने वाला बतलाया है।
डा० याकोबीने ही अपने 'महावीर और उसके पूर्ववर्ती' शीर्षक लेखमें बतलाया है कि बुद्धघोषने धम्मपदकी टीकामें लिखा है कि जो निम्रन्थ नग्न रहते है वे उत्तम निग्रन्थ माने जाते हैं। __स्पेंस हार्डीने अपनी पुस्तक 'ए मैन्युअल आफ बुद्धिज्म' (पृ० २३१ ) में लिखा है कि श्रावस्तोका मृगार सेठ निग्रन्थोंका भक्त था । उसने अपनी पुत्रवधू विशाखाको जो बुद्धकी भक्त थी, अपने निग्रन्थोंके दर्शनार्थ बुलाया। जब उसने नंगे निगंठोको देखा तो वह अचकचा कर लौट गई। __बुद्धचर्या (पृ० ३२६ ) में राहुल जीने इस घटनाका वर्णन करते हुए नंगे निगंठोंका निर्देश किया है। ___ इस तरह प्राचीन बौद्ध साहित्यमें निम्रन्थोंके दो रूप मिलते हैं, नंगे और कौपीनधारी या एकशाटक । उनमें पार्थापत्यीय निम्रन्थ भी सम्मिलित हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वस्त्र को लेकर पार्श्वनाथ और महावीरके धर्ममें कितना अन्तर था ? तथा पार्श्वनाथके अनुयायिओं द्वारा ग्राह्य और महावीरके द्वारा त्याज्य वस्त्रकी क्या स्थिति थी। ___ पीछे, भगवान बुद्धसे पहले निग्रन्थ सम्प्रदायका अस्तित्व सिद्ध करते हुए, मज्झिम निकायके महासीहनादसुत्तसे बुद्धकी पूर्वचर्याका वर्णन दे आये हैं और यह बतला आये हैं कि बुद्धने निग्रन्थोंकी चर्याका भी पालन किया था क्योंकि उसमें उन्होंने
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