Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा• इ०-पूर्व पीठिका उक्त बंशावलियोंमें दत्त राजाओंके नामोंके अवलोकनसे पता चलता है कि मगधके प्रसिद्ध शिशुनागवंशी राजा बिम्बसारके ठीक नामका पता पुराणकारोंको नहीं था, जब कि बौद्ध और जैन ग्रन्थकार उससे सुपरिचित थे।
मगध और अवन्तीके राजवंश उक्त पुराणोंमें प्रद्योतको अन्तिम वृहद्रथ राजाका उत्तराधिकारी कहा है. और पाँच प्रद्योतोंके पश्चात् शिशुनागवंशी राजाओंका निर्देश किया है । इससे ऐसा भ्रम होना स्वाभाविक है कि प्रद्योतबंश मगधमें राज्य करता था और उसके पश्चात् शिशुनागवंशी राजाओंका राज्य मगधमें हुआ। किन्तु यह प्रायः माना जाता है कि प्रद्योतवशने मगधमें राज्य नहीं किया और न मगधसे उसका कोई सम्बन्ध था। प्रद्योतवंशके संस्थापक राजा प्रद्योतको अवन्तीका ही राजा माना जाता है, जो भगवान महावीर, बुद्ध और मगधराज श्रेणिकका समकालीन था । इतिहासमें भी अवन्तिराज प्रद्योतका ही वर्णन मिलता है।
कुमारपाल प्रतिबोध (पृ०७६-८३) में उज्जैनीके प्रद्योतको कथा है। उसके अनुसार मगधके राजकुमार अभयने प्रद्य तका बन्दी बनाया और प्रद्योतने अभयकुमारके पिता श्रेणिक ( बिम्बसार ) के चरणोंमें सीस नवाया । जैन ग्रन्थोंके अनुसार इसी प्रद्योतके पुत्रका राज्याभिषेक भगवान महावीरके निर्वाणके दिन अवन्तीकी गद्दी पर हुआ और उसने ६० वर्ष राज्य किया।
जैन काल गणनामें मगधके नन्दवंशके पूर्व अवन्तीके पालककी काल गणना क्यों दी गई इस विषयको लेकर प्रायः ऊहापोह चलता है। पुराणोंके अवलोकनसे पता चलता है कि मगध और
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