Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका
सकती । यदि भद्रबाहु श्रुतकेवलीकी कालावधिको चन्द्रगुप्त मौर्यके काल के साथ सम्बद्ध कर दिया जाता है तो आर्य महागिरि, सुहस्ती तथा सम्प्रतिके जीवनसम्बन्धी अनुश्रुतियोंकी संगति भी बैठ जाती है ।
नंदमंत्री शकटाल
अब हम पुनः नन्दके मंत्री शकटालकी ओर आते हैं क्योंकि श्वेताम्बर साहित्य में स्थूलभद्रको उसका पुत्र कहा है ।
चन्द्रगुप्तके भारतीय आख्यानोंके लिये गुणाढ्यकी वृहत्कथा को सबसे प्राचीन माना जाता है । यद्यपि यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है किन्तु उसके दो संस्कृत रूपांतर उपलब्ध है— एक क्षेमेन्द्रकी वृहत्कथामंजरी और दूसरा सोमदेवका कथा सरित्सागर । यद्यपि य दोनों रचनाएँ ईसाकी ११वीं शती तथा उसके भी बादकी हैं। किन्तु इतिहासज्ञोंका मत है कि उनमें वृहत्कथाकी मूलवस्तु सुरक्षित है । ( भा० इं० पत्रिका, जि० १२, पृ० ३१० )
गुणाढ्ने चन्द्रगुप्तके विषयमें जो कथा दी है वह इस प्रकार है— इंद्रदत्त वर्षका शिष्य था और पाणिनि, कात्यायन, वररुचि, और व्याडिका सहाध्यायी था । गुरुने उससे दक्षिणामें बहुतसा धन माँगा | इंद्रदत्त अयोध्याके राजा नन्दके पास गया जो निन्यानबे करोड़ सुवर्ण मुद्राओंका स्वामी था । किन्तु वहाँ जानेपर उसे मालूम हुआ कि नन्द अभी अभी मर गया है । इंद्रदत्त नन्दके मृत शरीर में प्रविष्ट हो गया और व्याडि उसके शरीरकी रता करने लगा । नन्दके मृत शरीर में प्रविष्ट होने के बाद इंद्रदत्तने वररुचिको आवश्यक धन दे दिया । नन्दके मंत्री शकटालने जब देखा कि कृपण नंद बड़ा उदार हो गया है ती उसे संदेह हुआ ।
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