Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
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वस्त्र बांधते हैं। उन्होंने उन्हें 'क्लीब' कहा है। इससे प्रकट होता है कि विक्रमकी सातवीं आठवीं शताब्दी तक श्व ेताम्बर साधु भी कारण पड़ने पर ही वस्त्र धारण करते थे । सो भी कटिवस्त्र | यदि कटिवस्त्र भी निष्कारण धारण किया जाता था तो धारण करनेवाले साधुको कुसाधु माना जाता था ।
ऊपर के विवेचनसे स्पष्ट है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में शक्ति या लाचारी में ही वस्त्रका उपयोग करनेकी आज्ञा थी । उसीका दुरुपयोग करके वस्त्रका समर्थन किया गया और आपवादिक मार्गको औत्सर्गिक मार्गका रूप दे दिया ।
मंखलिपुत्त गोशालकका जीवनवृत्त
किन्हीं विद्वानों का ऐसा विश्वास है कि महावीरने जो अचेल कताको अपनाया, यह उनपर उनके शिष्य और बादको आजीविक सम्प्रदाय के गुरु मखलिपुत्त गोसालकका प्रभाव है । अतः नीचे उसी पर प्रकाश डाला जाता है ।
जीविकों का कोई साहित्य प्राप्त नहीं है जिसके आधार पर उनके विषय में कोई जानकारी प्राप्त की जा सके । हाँ, श्वेताम्बर जैन और बौद्ध साहित्य में आजीविक सम्प्रदाय के संस्थापक मंखलिपुत्त गोशालकका वर्णन मिलता है । भगवती सूत्र ( १५ श० १ उ० ) में गोशालक की जीवनी विस्तारसे दी है। प्रथम यहाँ हम उसे दे देना उचित समझते हैं ।
'वह मंखलि नामक एक मंख ( चित्रपट दिखाकर जीवन निर्वाह करने वाला भिक्षुक) का पुत्र था । एक ब्राह्मणकी गोशाला १ - इन्साइ० इ०रि०, पृ० १५८ से २६८ । से० बु० ई०, जि० ४५, प्रस्ता० पृ० २६ ।
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