Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै०
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द्वीप में यह घोषित हो गया कि वह बुद्ध है और उसके बहुतसे शिष्य हैं।
० सा० इ० - पूर्व पीठिका
उक्त बातोंके प्रकाश में गोशालक मस्करी और पूरणकाश्यपके जीवनवृत्त में तथा कतिपय सिद्धान्तों में समानता प्रतीत होती है । इससे दोनोंके ऐक्यका भ्रम होना सम्भव है। नौवीं - दसवीं शताब्दी के कतिपय जैन ग्रन्थोंमें केवल मस्करीका निर्देश मिलता है । आचार्य नेमिचन्द्र ने अपने गोम्मटसार जीवकाण्डकी गा० १६
Hariat अज्ञानवादी बतलाया है तथा यह भी बतलाया है। कि मस्करी मुक्तिसे पुनरागमन मानता था । यद्यपि मक्खलि गोशालक के मुक्ति सम्बन्धी विचार पूर्णतया ज्ञात नहीं है । तथापि तथोक्त अज्ञानवादी मस्करी मक्खलि गोशालक ही ज्ञात होता है । और दर्शनसार के अनुसार वह तथा सम्भवतया पूरण काश्यप भी प्रारम्भ में पार्श्वनाथके निग्रन्थ सम्प्रदाय के साधु थे । श्वेताम्ब रीय आगम में लिखा है कि गोशालकका पार्श्वपत्ययों से घनिष्ठ सम्बन्ध था अतः गोशालक प्रारम्भ में पार्श्वनाथका अनुयाया रहा हो, यह संभव है ।
महावीर और गोशालक के सम्मिलनका उद्देश्य
तथा पारस्परिक आदानप्रदान
डा० याकोबीका अनुमान है कि महावीर और गोशालक अपने अपने सम्प्रदायों को मिलाकर एक कर देनेके इरादे से मिले थे और चूँकि वे दोनो बहुत समय तक एक साथ रहे इसलिये उन दोनों में ऐकमत्य होनेका अनुमान करना स्वाभाविक है ।
कुछ
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वे लिखते हैं- 'मैं ० २३ के टिप्पण में बतला आया हूं कि 'सव्वे सत्ता, सव्वे पाना, सव्वे भूता, सव्त्रे जीवा' यह कथन गोशा लक और जैनों में समान है। तथा टीका से हम जानते हैं कि तिर्यञ्चों
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