Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
सत्कार, पुरस्कार, पराक्रम है वैसा किसी अन्य श्रमण अथवा ब्राह्मएका नहीं है । अतः यह चर्चा अवश्य उन्हींकी है । यह सोच कर वह खोजता खोजता उनके पास पहुँचा और विधिपूर्वक नमस्कार करके बोला- आप मेरे गुरु हैं, मैं आपका शिष्य हूं ।
इसके पश्चात् गोशालक छै वर्ष तक महावीर भगवानके साथ रहा ।
एक दिन शरदऋतु प्रारम्भमें भगवान महावीर गोशालक के साथ सिद्धार्थ ग्रामसे कुर्मग्राम गये । मार्गमें एक हरे भरे तिलके पेड़ को देखकर गोशालकने भगवानसे पूछा - भगवान ! यह तिल वृक्ष निष्पन्न होगा या नहीं ? तथा ये सात तिलपुष्प जीव यहाँसे निकलकर कहाँ उत्पन्न होंगे ?
भगवान बोले- यह तिल वृक्ष निष्पन्न होगा । और ये सात तिलपुष्प जीव यहाँसे निकलकर इसी तिलवृक्षकी एक फली में सात तिलरूपसे उत्पन्न होंगे। गोशालकको भगवानके इस कथन पर विश्वास नहीं हुआ । उसने वह तिलका पेड़ उखाड़ कर डाल दिया । अचानक उसी समय जोरकी वर्षा हुई। उससे वह तिल वृक्ष पुनः जम गया और वे सात तिलपुष्प जीव उसीकी फलिकामें सात तिल रूप से उत्पन्न हुए ।
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जब दोनों कुर्मग्राम से सिद्धार्थ ग्रामको लौटे तो उस तिल वृक्षको दोनोंने देखा । किन्तु गोशालकको तब भी विश्वास नहीं हुआ । उसने तिलकी फलीको फोड़कर देखा तो उसमें सात तिल थे । इस परसे गोशालकको यह हुआ कि इसी तरहसे सभी जीव मरकर पुनः लौटकर उसी शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं । वह भगवान महावीर से अलग हो गया । और श्रावस्ती में एक कुम्हारी के आवास में रहने लगा । तथा अपनेको 'जिन' कहने लगा ।
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