Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
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या बांसकी लाठी लेकर चलता हो। फिर क्या है ? मस्करी वह है जो यह उपदेश देता है कि कर्म मत करो, शान्तिका मार्ग ही श्रेयस्कर है। _____ डा. वासुदेवशरण अग्रवालका कहना है कि 'यहाँ मस्करीका का अर्थ मक्खलि गोशालसे है, जिन्होंने आजीवक सम्प्रदायकी स्थापना की थो। पतंजलिने स्पष्ट यही अर्थ लिया है।' किन्तु डा० बरुआका कहना है कि पाणिनिकी व्याख्या-बांसका दण्ड लेने वाले परिव्राजकको मस्करी कहते हैं-केवल उन्हें ही लागू नहीं होती जिन्हें जैन और बौद्ध ग्रन्थोंमें आजीविक कहा है। यही बात पतञ्जलिके सम्बन्धमें भी है। अर्थात् डा० बरुआके अभिप्रायानुसार मक्खलि गोशालकके सिवाय अन्य परिब्राजक भी जो दण्डधारी थे मस्करी कहलाते थे। पतञ्जलिकी व्याख्यासे भी यही ध्वनित होता है।
पाणिनिने गोशालक' शब्दकी भी व्युत्पत्ति की है। जो गोशालामें जन्म ले वह गोशालक है। जैन और बौद्ध उल्लेखोंके अनुसार मक्खलि या मंखलिपुत्तका जन्म गोशालामें हुआ था। पाणिनि मस्करी और गोशालकसे परिचित थे यह स्पष्ट है । किन्तु उन्होंने दोनोंका सामानाधिकरण्य नहीं किया । अतः गोशालक ही मस्करी था या मस्करी शब्द गोशालक और उसके अनुयायिओंके लिये ही व्यवहृत होता था यह नहीं कहा जा सकता।
एक बात और भी ध्यान देनेकी है। जैन आगमोंमें गोशालक को मंखलिपुत्त कहा है और बौद्ध त्रिपिटकोंमें मक्खलि कहा
१ पा० मा०, पृ० ३७६ । २ भां० इं० पत्रिका, जि०८, पृ० १८४ । ३ गोशालायां जातः गोशालकः ( ४-३-३५ )।
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