Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका आजीविक हैं तो निश्चय ही बाणभट्टके द्वारा निर्दिष्ट मस्करी आजीविक नहीं है।
उक्त बातोंको लक्ष्यमें रखते हुए डा० बरुआका यह कथन कि हर्षचरितमें निर्दिष्ट मस्करी वराहमिहिरके आजीविकका स्थानापन्न है, निस्सन्देह तो नहीं माना जा सकता। . ____ इस तरह विभिन्न उल्लेखोंके प्रकाशमें मस्करी और मक्खलि गोशालककी तथा मस्करी और आजीविकोंकी एकरूपता भी सन्देह रहित नहीं है। इस विषयमें हम अपनी ओरसे कुछ न लिखकर आजीविकोंके विशिष्ट अभ्यासी डा० वरुआका मत ही लिख देना उचित समझते हैं। वह कहते हैं--'उक्त विषयमें जितने उदाहरण दिये गये हैं उनमें एकरूपता नहीं है। क्योंकि कुछ अन्य ब्राह्मण ग्रन्थोंमें, यथा जानकी हरण और भट्टिकाव्यमें आजीविकको मस्करी और एकदण्डीका तुल्यार्थक कहा है। किन्तु ये प्रयोग निराबाध नहीं हैं क्योंकि कतिपय जैन और बौद्ध ग्रन्थोंमें आजीविकोंको स्पष्ट रूपसे परिव्राजकों या परमहंसोंसे भिन्न बतलाया है। और परिव्राजकों या परमहंसोंके एकदण्डी और त्रिदण्डी दो मुख्य विभाग थे। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि आजीविकों और परिब्राजकोंका पार्थक्य उतना ही प्राचीन है जितना प्राचीन मक्खलि गोशालकका समय है। और एक बौद्ध ग्रन्थके अंशसे कोई भी इसका अनुमान लगा सकता है। कुछ अन्य बौद्ध निकायोंमें भी इस प्रकार के अंश पाये जाते हैं जिनमें बौद्धोंने स्वयं आजीविकोंको परिव्राजकों और त्रिदण्डियोंसे भिन्न बतलाया है।'-भा० ई० पत्रि०, जि०८, पृ० १५ । आगे डा० वरुआने लिखा है - 'एक दृष्टिसे प्राचीन जैन और बौद्ध ग्रन्थोंमें अत्यन्त समानता है
१-'कूनपन्नास आजीवसते, एकूनपन्नास परिभाजकसते'-दीघ० ।
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