Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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४३.
ज० सा० इ० पूर्व-पीठिका ___ बौद्ध उल्लेखोंसे भी प्रकट होता है कि अच्छी आजीविकाके लोभसे ही गोशालकने नंगा रहना पसन्द किया।
दीघनिकायकी टीकामें बुद्ध घोषने लिखा है कि-'गोशालका नाम मक्खलि था, गोशालामें पैदा होनेसे वह गोशाल कहलाया। एक दिन तेलपात्र टूट गया। मालिकने उसे पकड़नेके लिये उसका वस्त्र पकड़ लिया। वह वस्त्र छोड़कर भाग आया और नंगा रहने लगा; क्योंकि नंगे रहनेसे अच्छी आजीविका मिलनेकी श्राशा थो।' . बुद्धघोषके उक्त कथनसे भी हमारी ही बातका समर्थन होता है। आजीविकाके लोभसे ही उसने नंगा रहना स्वीकार किया। उसने महावीरको नग्न अवस्थामें अच्छा आहार और आदर सत्कार पाते देखा। अतः वह उसे जंच गई। और उसने भी नग्नताको ही आदर्श बनाया।
प्रकृत विषय पर और भी प्रकाश डालनेके लिये आजीविक सम्प्रदायके सम्बन्धमें प्रकाश डालना जरूरी है।
गोशाल और परिव्राजक डा० याकोबीका कहना है कि बौद्ध उल्लेख गोशालकको नन्द वक्ख और किस्स संकिक्कके अचेलक परिव्राजक सम्प्रदायका, जो प्राचीन साधु सम्प्रदाय था उत्तराधिकारी बतलाते हैं।
1-The Budhist records, however, speek of him as the successor of Nanda vkha, and kiss samkikka, and of his sect, the Achelaka paribb. gakas, as a longestablished order of monks' ( से० ७० ई०, जि० ४५, प्रस्ता० पृ० २९)
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