Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका
भी भगवान महावीर स्वामीसे क्यों नहीं किये ? अनेक पार्श्वपत्ययों के भी भगवानसे प्रश्न करनेका वर्णन भगवती आदि में पाया जाता है । किन्तु ऐसे महत्वके प्रश्न भगवानसे किसीने नहीं किये, और न भगवान के श्रीमखसे उनपर कुछ प्रकाश डाला गया । गौतमने भी भगवानसे बहुत से प्रश्न किये किन्तु उन्होंने भी दोनों धर्मोके अन्तर के सम्बन्धमं भगवान् से कोई प्रश्न नहीं किया । यह बात उत्तराध्ययनमें निर्दिष्ट केशी गौतम संवाद के सम्बन्ध में सन्देह को उत्पन्न करती है ।
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फिर भी श्वेताम्बर साहित्यसे प्राप्त विवरणके आधार वर इतना ही कहा जा सकता है कि भगवान पार्श्वनाथके धर्ममें साधुओंके लिये सान्तरोत्तर वस्त्रकी व्यवस्था थी— अर्थात् साधु वत्र पास में रखते थे और आवश्यकता के समय उसे ओढ़ लेते थे । किन्तु यह स्थिति उस समयकी थी जब पार्श्वनाथ के शिष्यों में शिथिलाचार आ चुका था । अतः पार्श्वनाथ भगवान ने साधुओंके व के विषय में वास्तवमें क्या यही नीति निर्धारित की थी यह निस्सन्देह रूपसे नहीं कहा जा सकता । फिर भी इतना मानकर चला जा सकता है कि वस्त्रके विषय में जितनी कड़ी नीति भगवान महावीरने अपनायी, उतनी पार्श्वनाथने नहीं अपनाई। उन्हें अपने साधुत्रों की सरलता और समझदारी पर विश्वास था । उनसे यह आशा की जाती थी कि वे प्राप्त सुविधाके तथ्य को समझकर उसका दुरुपयोग नहीं करेंगे। किन्तु महावीर भगवान के समय में स्थिति बदल चुकी थी । अतः उन्होंने अचेल' को आवश्यक कल्प निर्धारित करना उचित समझा ।
दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंमें साधुओं के दस कल्प बतलाये हैं । कल्प व्यवस्था या सम्यक् आचारको कहते
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