Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
संघ भेद
४१७
हरण और मुंहपट्टी अवश्य रहती है. अतः वे वस्त्र रहते हुए भी अचेल कहे जाते हैं । इस पर यह शङ्का की गई कि वस्त्र रहते हुए अचेल कैसे कहा जा सकता है ? तो उत्तर दिया गया कि शास्त्र में, लोकमें, वस्त्रके रहते हुए भी अचेल कहनेकी रूढ़ि है। ___ सारांश यह है कि अचेलके दो भेद किये गये एक मुख्य और एक गौण । मुख्य अचेल केवल तीर्थङ्कर थे। आजकल के लोगोंके लिये मुख्य अचेलपना उपकारी नहीं हो सकता ।
अतः जो मुनि एषणा समितिके द्वारा प्राप्त निर्दोष, जीर्ण, निस्सार और अल्प वस्त्र धारण करते हैं या कदाचित् वस्त्र धारण करते हैं वे सचेल होते हुए भी उपचारसे अचेल कहे जाते हैं। जैसे कोई मनुष्य नदीको पार करते समय अपने सब वस्त्र उतार कर सिर पर रख लेता है तो लोग वस्त्र होते हुए भी उसे नंगा ही कहते हैं वैसे ही वस्त्र रहते हुए भी मुनि अचेल कहे जाते हैं। तथा जैसे कोई स्त्री फटी हुई जीर्ण साड़ी पहिने हुए है। वह जुलाहेके पास जाकर कहती है-हे जुलाहे ! मेरे लिये जल्दी
१-'सदसंत चेलगोऽचेलगो य जं लोगसमयसंसिद्धो ।
तेणाचेला मुणा संतेहि जिणा असंतेहि ।।२५६८ ॥ परिसुद्धजुण्णकुच्छिय थोवाऽनिययन्नभोगभोगेहिं । मुणश्रो मुच्छारहिया संतेहिं अचेलया होति ।।२५६०॥ जह जलमवगाहंतो बहुचेलो वि सिरवेट्ठियकडिल्लो । भएणइ नरो अचेलो तह मुणो संतचेला वि ॥२६००॥ तह थोवजुन्नकच्छियचेलेहि वि भन्नए अचेलोत्ति । जह तुर सौलिय लहुँदो वोत्ति नग्गिया मोत्ति ॥२६०१॥'
-विशे० भा०
२७
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org