Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
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कल्प और स्थविर कल्पके भेदको पीछेसे कल्पित बतलाया है और श्वेताम्बरीय आगमिक साहित्य के अवलोकनसे भी उसका समर्थन होता है । आचारांग सूत्र में तो ये दोनों भेद हैं ही नहीं, अन्य भी प्राचीन अंगों में नहीं हैं। हाँ, कल्पसूत्र नियुक्ति में हैं । और इसलिये उसे उसी समयकी उपज कहा जा सकता है ।
उक्त कथा पर एक आपत्ति यह की आती है कि उसमें संघ उज्जैनीसे दक्षिणकी ओर गया ऐसा लिखा है । डा० फ्लीटका कहना है कि संघकी दक्षिण यात्रा ऐतिहासिक सत्य है, चाहे वह उज्जैनी से गया हो या और कहींसे । ( इण्डि०, एण्टि०, जिल्द २१, पृ० १५६ )
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अब हम श्वेताम्बर साहित्यसे उस कथाको देते हैं जिसमें बोटिक सम्प्रदायकी उत्पत्ति बतलाई है ।
१ - 'इष्टं न यैगुरोर्वाक्यं संसारार्णवतारकम् । जिन स्थविरकल्पं च विधाय द्विविधं भुवि ॥६७॥ अर्धफालक संयुक्तमज्ञातपरमार्थकै । तैरिदं कल्पितं तीर्थं कातरैः शक्तिवर्जितैः ॥ ६८ ॥
- हरि० क० को० । २ - 'छव्वाससयाइं नवुत्तराई तहश्रा सिद्धिं गयस्त वीरस्स । तो वोडियाण दिट्ठी रहवीरपुरे समुप्परगा ॥। २५५० ॥ रहवीरपुरं नगरं दीवगमुजाण मजकरहे य । सिवभूईस्सुवहिम्मि पुच्छा थेराण कहणा य ।। २५५१ ।। बोडियशिवभूईश्रो वोडियलिंगस्स होई उपपत्ती । कोडिन कोट्टवीरा परंपराफासमुप्पन्ना || २५५२ ।।
- विशे० भा० ।
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