Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका हुआ। वोटिकका अर्थ दिगम्बर जैन सम्प्रदाय कैसे किया गया
और कैसे 'वोटिक' शब्द निष्पन्न हुआ, यह हम नहीं जानते; क्योंकि श्वेताम्बर साहित्यमें इस विषयका कोई स्पष्टीकरण हमारे देखनेमें नहीं आया । शिवभूतिको भी वोटिक कहा गया है। शायद इसीसे उसके द्वारा प्रवर्तित सम्प्रदायको भी बोटिक संज्ञा दी गई है। किन्तु ऐसी स्थितिमें शिवभूतिके द्वारा प्रवर्तित वोटिक सम्प्रदाय ही दिगम्बर जैन सम्प्रदाय है, यह कैसे कहा जा सकता है । इसके सम्बन्धमें जर्मन ओरियन्टल सोसायटीके जर्नलमें डा० याकोवीने एक विस्तृत लेख प्रकाशित कराया था। उसमें उन्होंने लिखा है कि वोटिक संप्रदायकी उत्पत्ति दिगंबर संप्रदायके बहुत काल पश्चात् हुई है। तथा श्वेताम्बरोंसे दिगम्बरोंका पार्थक्य भद्रबाहुके समयसे क्रमशः हुआ है। खेद है कि जर्मन भाषामें होनेके कारण हम उस लेखके विषयसे पूर्ण रूपसे परिचित नहीं हो सके। फिर भ' उसके उक्त सारांशसे यह स्पष्ट है कि जेकोबी वोटिक सम्प्रदाय को एक भिन्न सम्प्रदाय मानते थे। अतः श्वेताम्बर साहित्यकी उक्त कथासे दि० जैन सम्प्रदायकी उत्पत्ति प्रमाणित करना संभव नहीं है। और इसलिये उक्त आपत्तियों के प्रकाशमें प्रकृत विषय पर उक्त कथा असंगत ठहरती है। जब कि दिगम्बर साहित्यम पाई जाने वाली कथा अनेक दृष्टियोंसे सुसंगत प्रतीत होती है।
संघभेदके मूल कारण वस्त्रपर विचार दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंको कथाओंसे तथा दोनोंके नामसे यह तो स्पष्ट है कि दोनों साधुओंके वस्त्र परिधान या नग्नताके विवादको ही संघ भेदका मूल कारण मानते हैं। अतः यहाँ साधुओंके वस्त्र परिधान के सम्बन्धमें विचार करना आवश्यक है। इस समस्याको दो कालोंमें विभाजित कर देना उचित होगा -एक भगवान महावीर
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