Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
३८९ वर्ष बीतनेपर रथवीरपुरमें बोटिक शिवभूतिसे बोटिकोंका मत उत्पन्न हुआ।
श्वेताम्बर परम्पराके अनुसार भगवान महावीरके तीर्थकालमें सात निन्हव उत्पन्न हुए। आगमकी यथार्थ बातको छिपाकर अन्यथा कथन करनेको निन्हव कहते हैं। इस तरहकी घटनाएँ सम्प्रदायोंकी उत्पत्तिमें कारण हुआ करती हैं। किन्तु इन सात निन्हवोंके कारण कोई नया सम्प्रदाय उत्पन्न नहीं हुआ और एकको छोड़कर शेष सभी निन्हवोंके कर्ता आचार्य समझानेसे मान गये। ____ स्थानांग' सूत्रमें सातो निन्हवोंके नाम, स्थान और कर्ता
आचार्यों का निर्देश पाया जाता है। आवश्यक नियुक्ति में उनका काल भी दिया है। किन्तु स्थान और काल आठ निन्हवोंका दिया है। तथा उपसंहार करते हुए भी सात ही निन्हवोंका निर्देश किया
१-'समणस्स णं भगवत्रो महावीरस्स तित्थंसि सत्त पवयणणिराहगा पण्णत्ता । तं जहा-बहुरया, जीवपएसिया, अव्वत्तिया, सामु. च्छेइया, दोकिरिया, तेरासिया, अबद्धिया। एएसिं णं सत्तण्हं पवयणणिण्हगाणं सत्त धम्मायरिया होत्था-जमाली, तिस्प्तगुत्ते, अासाढे, प्रासमित्ते, गंगे, छल्लुए, गोट्ठा माहिल्ले । एएसिं णं सत्तएहं पवयणणिराहगाणं सत्त उप्पत्तिनगरे होत्था। तं जहा-सावत्थी, उसभपुरं, सेयविया, मिहिल, उल्लुगातीरं पुरिमंतरंजि, दसपुर, णिण्हग उम्पत्ति नगराई ॥
-स्था०, सूत्र ५८७ । २-श्राव नि०, गा० ७७६-७८३ । ३-एवं एए कहिश्रा अोसप्पिणिए उ निण्या सत्त ।
वीरवररस पषयणे सेसाणं पवयणे नत्थि ॥७८४ ॥
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