Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका देवसेनने अपने दर्शनसार में लिखा है-'विक्रम राजाकी मृत्युके १३६ वर्ष बाद सौराष्ट्र देशके वलभीपुरमें श्वेतपट ( श्वेताम्बर ) संघ उत्पन्न हुआ।११।। श्री भद्रबाहु गणिके शिष्य शांति नामके आचार्य थे। उनका जिनचंद्र नामका एक शिथिलाचारी दुष्ट शिष्य था ॥१२॥ उसने मत चलाया कि स्त्रियोंको उसी भवमें मोक्ष प्राप्त हो सकता है। केवल ज्ञानी भोजन करते हैं और उन्हें रोग होता है ॥१३॥ वस्त्र धारण करने वाला भी मुनि मोक्ष प्राप्त कर सकता है। महावीरका गर्भ परिवर्तन हुआ था। जैनके सिवाय अन्य लिंगसे भी मुक्ति हो सकती है तथा प्रासुक भोजन सर्वत्र किया जा सकता है ।।१४।।
कहना न होगा कि स्त्रीकी मुक्ति, केवलि मुक्ति, सवस्त्र साधुकी मुक्ति, महावीर भगवानका गर्भ परिवर्तन आदि जो बातें श्वेताम्बर मतके सम्बन्धमें ऊपर बतलाई हैं, उन्हें दिगम्बर सम्प्रदाय नहीं मानता और मुख्य रूपसे इन्ही बातोंको लेकर दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायमें मतभेद है।
१-एक्कसए छत्तीसे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्य ।
सोरठे वलहीए उप्पण्णो सेवडो संघो ॥११॥ सिरिभद्दबाहुगणिणो सीसो णामेण संति श्राइरिओ। तस्स य सीसो दुट्ठो जिणचंदो मंदचारित्तो ॥ १२ ॥ तेण कियं मयमेयं इत्थीणं अत्थि तब्भवे मोक्खो। केवलणाणोण पुण अण्णक्खाणं तहा रोगो ॥१३॥ अंबरसहियो वि जई सिझई वीरस्स गन्मचारत्तं । परलिंगे विय मुत्ती फासुयभोजं च सव्वत्थ ॥१४॥
-भा० इं० पत्रि०, जि० १५, भाग ३-४, पृ० २०२॥
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