Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
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के ऐसा कहने पर हम लोग वैसा करने लगे । एक दिन एक कृशकाय निर्ग्रन्थ साधु हाथमें भिक्षा पात्र लेकर श्रावक के घर गया । अँधेरे में उस नग्न मुनिको देखकर एक गर्भिणी श्राविकाका, जो नई आई थी भयसे गर्भपात हो गया। तब श्रावकों ने आकर साधुओंसे कहा - 'समय बड़ा खराब है। जब तक स्थिति ठीक नहीं होती तब तक आप लोग बायें हाथ से अर्ध फालक ( आधे वस्त्र खण्ड ) को आगे करके और दाहिने हाथ में भिक्षा पात्र लेकर रात्रि में आहार लेनेके लिये आया करें। जब सुभिक्ष हो जायेगा तो प्रायश्चित लेकर पुनः अपने तपमें संलग्न हो जाना' | श्रावकों का वचन सुनकर यतिगण वैसा करने लगे ।
जब सुभित हो गया तो रामिल्ल, स्थविर स्थूल और भद्राचार्यने सकल संघको बुलाकर कहा- अब आप लोग अर्धफालकको छोड़कर निथरूपताको धारण करें। उनके वचनोंको सुनकर कुछ साधुओंने निग्रन्थ रूप धारण कर लिया । रामिल्ल, स्थविर स्थूल और भद्राचार्य भी विशाखाचार्य के पास गये और उन्होंने अर्ध वस्त्र को छोड़कर मुनिका रूप नैयन्ध्य धारण कर लिया । जिन्हें गुरुका वचन रुचिकर प्रतीत नहीं हुआ, उन शक्तिहीनोंने जिनकल्प और स्थविर कल्पका भेद करके अर्धफालक सम्प्रदायका चलन किया ।
सौराष्ट्र देशमें वलभी नामकी नगरी है । उसमें वप्रवाद नाम का मिध्यादृष्टि राजा राज्य करता था । उसकी पटरानीका नाम स्वामिनी था । वह अर्धफालक वाले साधुओं की भक्त थी । एक दिन राजा अपनी रानी के साथ महल में बैठा हुआ गवाक्षोंके द्वारा अपने नगरकी शोभा देखता था । उसी समय अर्धपालक संघ भिक्षाके निमित्त से राजाके महल में आया । अर्धफालक संघको
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