Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पोटका हरिषेण कृत जैन वृहत्कथा कोशमें चाणक्यकी भी कथा है । ऐसा प्रतीत होता है कि हरिषेणने शकटालकी कथासे चाणक्य वाला अंश अलग करके चाणक्यकी कथाका निर्माण किया है। गुणाढ्यकी कथामें चाणक्यका जो वृत्तांत दिया है वृहत्कथाकोशमें भी चाणक्यकी कथामें वही वृत्तांत दिया है किंतु कथाकोशमें यद्यपि शकटालको नंदका मंत्री बतलाया है किंतु शकटालको नंद वंशके विनाशका प्रेरक न बनाकर 'कवि' नामक एक अन्य मंत्रीके द्वारा यह कार्य कराया गया है। अर्थात् नन्द कविको कूपमें डालता है उसका परिवार मर जाता है और वह बदला लेनेके लिये जीवित रहता है । नन्द द्वारा मुक्त होने पर वह पुनः मंत्री बनता है और जंगल में चाणक्यको घासकी जड़ें उखाड़ता देखकर उसे अपने इष्टकी सिद्धि में सहायक बनाता है और नंदके द्वारा चाणक्यका अपमान कराकर नंदवंशका नाश कराता है।
श्वेताम्बरीय साहित्यमें भी चाणक्यकी कथा लगभग उक्त प्रकारसे ही पाई जाती है । तथा शकटालका वृत्तांत स्थूलभद्रके पिताके रूपमें पाया जाता है। उसमें भी शकटालको नौवें नंदका मंत्री तथा वररुचिको उसका प्रशंसक बतलाया है। वररुचिकी करामातका भण्डाफोड़ कर देनेके कारण वररुचि शकटालसे रुष्ट हो जाता है और यह मिथ्या प्रवाद फैलाता है कि 'शकटाल नन्दको मारकर राजा होना चाहता है। राजा भी इस मिथ्या प्रवादके कारण शकटालसे रुष्ट हो जाता है। तब शकटाल अपने वंशको बचानेके लिये अपने छोटे पुत्रसे कहता है कि जब मैं राजाको नमस्कार करूँ तब मेरा सिर काट डालना। पिताके अनुरोधसे पुत्र वैसा ही करता है। शकटालके दो पुत्र बतलाये हैं, छोटा पुत्र नन्दका मंत्री बन जाता है और बड़ा पुत्र स्थूलभद्र ३० वर्षकी वयमें साधु हो जाता है।
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