Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचार्य काल गणना
३६३ उस समय नंदका पुत्र चंद्रगुप्त बालक था। अतः उसने यह उचित समझा कि इंद्रदत्त नंदके शरीरमें ही बना रहे. और इसलिये शकटालने छलसे इंद्रदत्तका शरीर जला दिया। इंद्रदत्तने शकटालको उसके पुत्रोंके साथ एक कूपमें डाल दिया , और उन्हें थोड़ा सा भोजन देने लगा। शकटालके सब पुत्रोंने स्वयं भोजन न करके अपने पिताको भोजन ग्रहण करनेके लिये विवश किया, जिससे वह बदला ले सके । वररुचि इंद्रदत्तका मंत्री था वह स्वयं शासनका भार उठाने में असमर्थ था, अतः उसने इंद्रदत्तपर दबाव डाला कि वह शकटालको पुनः मंत्री बनावे। इंद्रदत्त इन दोनों मंत्रियोंको राज्यभार सौंपकर योगानंदके रूपमें विषयासक्त हो गया।
_ 'एक बार वररुचि इंद्रदत्तका कोपभाजन बना। इंद्रदत्तने उसके वधकी आज्ञा दे दी। किंतु शकटालने वररुचिको छिपाकर उसकी रक्षा की। वररुचिकी मृत्युकी झूठी खबर पाकर उसके सम्बंधियोंने भी प्राण त्याग दिये। इससे इंद्रदत्तकी बड़ी बदनामी हुई । तब शकटालने चाणक्यकी सहायतासे योगानन्द और उसके पुत्र हिरण्यगुप्तको मार कर चंद्रगुप्तको उसके पिताके राज्यासनपर बैठाया।
वृहत्कथामें शकटालसे चाणक्यके भेंटकी कथा इस प्रकार पाई जाती है-'शकटालने चाणक्यको एक कटीली घासकी जड़े खोदते देखा, जो उसके पैरमें चुभ गई थी। उसे अपने मतलबका व्यक्ति समझकर शकटालने योगानंदके महल में होनेवाले श्राद्धके लिए निमंत्रित कर दिया। तथा गुप्तरूपसे उसके स्थानपर दूसरे व्यक्तिको बैठा दिया। जब चाणक्य आया और उसने स्थानको घिरा हुआ पाया तो क्रुद्ध हो, शिखा खोल नंदको नष्ट करनेकी
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