Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचार्य काल गणना सुहस्तीने अपने दोषोंकी आलोचना करके तथा अपने अपराधकी क्षमा मांगकर आर्य महागिरिसे मिलाप कर लिया। ( अभि० रा० में 'संग्रह शब्दसे) __ इस कथाके अनुसार तो आर्य महागिरि भी सम्प्रतिके राज्य कालमें वर्तमान थे। किन्तु पट्टावलीके अनुसार सहुस्तीसे महागिरि तीस वर्ष बड़े थे अतः उनका स्वर्गवास भी सुहस्तीसे तीस वर्ष पूर्व हो चुका था क्योंकि दोनोंका आयुमान सौ सौ वर्ष माना गया है और अधिक वृद्धि करनेकी गुंजाइश नहीं है । मुनि कल्याण विजय जीने आर्य महागिरिका स्वर्गवास वीर निर्वाणाब्द २६१ में
और सुहस्तीका स्वर्गवास वीर निर्वाण २६१ में माना है और अशोकका राज्यकाल वीर निर्वाण २६५ तक माना है। इसका तो यह मतलब हुआ कि सम्प्रतिने अशोकके राज्यकालके अन्दर ही राज्यपद प्राप्त कर लिया था और अशोकने जो कुछ बौद्ध धर्मके लिये किया, सम्प्रतिने अपने दादा अशोकके राज्यकालमें ही वही सब जैन धर्मके लिये किया । किन्तु यह संभव प्रतीत नहीं होता।
इसीसे श्री जायसवालने लिखा था-सम्प्रति और सुहस्तीका समय एकदम गलत है। __ असलमें राज्यकाल गणना और प्राचार्य काल गणनाकी संगति बैठानेके लिये ही मुनि कल्याण विजय जीको कालकी खींचातानी करनी पड़ी है, फिर भी वह संगति नहीं बैठ सकी है। इससे हमारा इतना ही आशय है कि प्राचार्य काल गणनामें अवश्य ही कुछ वर्षोंकी भूल है और उसमें सुधार हुए बिना सम्प्रति और सुहस्ती तथा महागिरिकी कालावधि संगत नहीं बैठ ____१-ज० वि० उ० रि० सो, जि० १, पृ० १०४ का फुटनोट नं० १३७ में।
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