Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचार्य काल गणना
३५६ का अन्तर है। इस सुदीर्घ कालकी पूर्तिके लिये मुनि श्री कल्याण विजय जीने आर्य सुहस्तीके साथ स्थूलभद्रकी संगति बैठानेके लिये आचार्य पदारोहण कालकी समाप्तिके पश्चात् भीस्थूलभद्रको जीवित माना है। फिर भी सम्प्रतिके इतिहास सम्मत कालके साथ आर्य सुहस्तीकी संगति नहीं बैठ सकी है , क्योंकि मुनि जीने वीर निर्वाणके २६श्वे वर्षमें सुहस्तीका स्वर्गवास माना है। और इतिहासके अनुसार (५२७-२०१ = २३६ ई० पू०) उसी वर्ष अशोकका अन्त हुआ था। जायसवाल जीने लिखा है कि जैन रिकार्डोंमें इसके स्पष्ट चिन्ह हैं कि सम्प्रति चन्द्रगुप्तके १०५ वर्ष पश्चात् अर्थात् अशोककी मृत्युके १६ वर्ष बाद राज्यासन पर बैठा ( ज० वि० उ० रि० सो०, जि० १, पृ० ६४-६५)
वायु पुराण और तारानाथ आदिके अनुसार अशोकका उत्त. राधिकारी उसका बेटा कुनाल था । उसका राज्यकाल पाठ बरस लिखा है। विष्णु पुराणके अनुसार अशोकका पोता दशरथ था। मत्स्य पुराणमें भी उसका नाम है । बारवर (गया जिला) के पास नागार्जुनी पहाड़ी पर दशरथकी बनवाई हुई तीन गुफाएँ है जिनमें उसके दान सूचक अभिलेख हैं। दिव्यावदान और श्वे, जैन अनुश्रुतिके अनुसार अशोकका पोता सम्प्रति था। मत्स्य और विष्णु पुराणमें दशरथके बाद सम्प्रति या संगतका नाम है। जायसवाल जीने इसका यह परिणाम निकाला है कि सम्प्रति दशरथका छोटा भाई और उत्तराधिकारी था। अतः उन्होंने अशोकके पश्चात् ८ वर्ष तक कुनालका, उसके बाद ८ वर्ष तक दशरथका और उसके बाद सम्प्रतिका राज्यकाल ठहराया है। __ श्वेताम्बरीय साहित्यमें सम्प्रतिकी कथा इस प्रकार दी हैआर्य सुहस्तीने कौशाम्बी नगरीमें आहारके अभिलाषी एक दरिद्र
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