Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका
आर्यसुहस्ती और सम्प्रति कल्पसूत्र स्थविरावलीके अनुसार आर्य यशोभद्रके दोशिष्य थे-संभूति विजय और भद्रबाहु। संभूति विजयके शिष्यका नाम स्थूलभद्र था। और स्थूलभद्रके दो शिष्य थे-आर्य महागिरि और सुहस्ती।
आर्य भद्रबाहुका स्वर्गवास वीर निर्वाणसे १७० वर्ष पश्चात् हुआ। स्थूलभद्र बीर निर्वाण १७० से २१५ तक आचार्य पदपर रहे। उनके पश्चात् आर्य महागिरि ३० वर्ष तक और तत्पश्चात् सुहस्ती ४६ वर्ष तक पट्टासीन रहे। ___श्वेताम्बरीय उल्लेखोंके अनुसार स्थूलभद्र अन्तिम नन्दके मंत्री शकटालके पुत्र थे। और उनके शिष्य सुहस्तीने अशोकके पौत्र सम्प्रतिको जैन धर्ममें दीक्षित करके जैन धर्मका महान उद्धार कराया था। स्थूलभद्रका स्वर्गवास चन्द्रगुप्तके राज्यकालमें हुआ और चन्द्रगुप्तके राज्यकाल में ही आर्य सुहस्तीने उनसे दीक्षा ली। तत्पश्चात् आर्य सुहस्ती सम्प्रतिके राज्यकाल तक जीवित रहे । अर्थात् आर्य' सुहस्तीने चन्द्रगुप्त मौर्य, तत्पुत्र विन्दुसार, तत्पुत्र अशोक और अशोकके पौत्र सम्प्रतिका राज्यकाल देखा। श्री जायसवाल जीने चन्द्रगुप्तका राज्यकाल ई० पू० ३२६ से ३०२ तक तथा सम्प्रतिका राज्यकाल ई० पू० २२० से २११ तक ठहराया है। अर्थात् चन्द्रगुप्त और सम्प्रतिके मध्यमें एक शताब्दी
१-पट्टा० समु०, पृ० १७ ।
२-श्वेताम्बर चन्द्रगुप्त के राज्याभिषेक और सुहस्तीकी मृत्युके बीचमें ११० या १०६ वर्षका अन्तर गिनते हैं । (परि. पर्व०, जेकोबी की प्रस्तावना )
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