Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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आचार्य काल गणना
_____३ केवली
पाँच श्रुतकेवली गौतम गणधर १२ वर्ष १ विष्णुकुमार' १४ वर्ष २ सुधर्मास्वामी' ११ ,, २ नन्दिमित्र १६ ३ जम्बू स्वामी ३८, ३ अपराजित २२,,
- ४ गोवर्धन ६२ वर्ष ५ भद्रबाहु २६ ,,
१०० वर्ष इस तरह भगवान महावीरके निर्वाणसे भद्रशाहु श्रुतकेवली पर्यन्त १६२ वर्ष होते हैं।
श्वेताम्बरीय स्थविरावलीके अनुसार महावीर निर्वाणके
१-धवला (पृ० ६६, भा० १) में तथा श्रवणवेलगोलाके शिलालेख नं० १ में दूसरे केवलीका नाम लोहार्य ही पाया जाता है । किन्तु जयधवला, हरिवंश पु०, श्रुतावतार तथा शिलालेख नं० १०५ ( २५४ ) में उसके स्थानपर सुधर्माका नाम है । जम्बूद्वीप पण्णतिमें स्पष्ट लिखा है कि लोहार्यका नाम सुधर्मा भी था । यथा
तेणवि लोहजस्स य लोहज्जेण य सुधम्मणामेण |
गणहर सुधम्मणा खलु जंबुणामस्स णिइिंढें ॥१०॥ २-तिलोयपएणति जम्बूद्वीपपएणति, अादिपुराण व श्रुतस्कन्धमें नन्दि या नन्दि मुनि नाम आता है विष्णु और नन्दि भी एक ही श्राचार्य के दो नाम प्रतीत होते हैं । यह संभव है कि प्राचार्यका पूरा नाम विष्णु नन्दि हो, संक्षेपमें उन्हें कहीं विष्णु और कहीं नन्दि कहा गया हो।
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