Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका मिलता है, एक तो अन्तिम श्रुत केवली भद्रबाहु, और दूसरे वे भद्रबाहु हैं, जिनसे सरस्वती गच्छकी नन्दि आम्नायकी पट्टावली
लियों और ग्यारह दशपूर्वियोंका समय तो क्रमशः वही ६२+ १०० + १८३ वर्ष बतलाया गया है और उसका जोड़ ३४५ वर्ष कहा है । इसके अागे जिन पाँच एकादश अंगधारियोंका समय अन्यत्र २२० वर्ष बतलाया है , यहाँ उनका समय १२३ वर्ष बतलाया है। इनके पश्चात् आगेके जिन चार श्राचार्यों को अन्यत्र आचारांगधारी कहा है उन्हें यहाँ (नं० पट्टा० ) दस, नौ और आठ अंगके धारी कहा है । तथा इनका समय भी ११८ वर्षके स्थान में ६६ वर्ष कहा है। इस पहावलीकी काल गणनाके अनुसार वीर निर्वाणसे ६२+१८० + १८३ + १२३+ २४ = ४६२ वर्षके पश्चात् द्वितीय भद्रबाहु हुए और उनका काल २३ वर्ष बतलाया है। अर्थात् ५२७-४६२ ईस्वी सन्से ३५ वर्ष पूर्व या विक्रम सम्वत् ४६२-४७०%D२२ में द्वितीय भद्रबाहु हुए । किन्तु पट्टावलामें 'लिखा है 'बहुरि महावीर स्वामी पीछे ४९२ च्यारि से वाण वर्ष गये, सुभद्राचार्यका र्तमान वर्ष २४ सो विक्रम जन्म तैं बावीस वर्ष । बहुरि ता का राज्य ते ४ वर्ष दूसरा भद्रबाहु हुअा जानना । ( इं० ए०, जि० २१, पृ० ५७ आदि ) श्राशय यह है कि इस पट्टावलीमें 'तदुक्तं विक्रम प्रबन्धे' लिखकर दो गाथाएँ उद्बत की हैं, जिनमें बतलाया है कि वीर 'निर्वाणसे ४७० वर्ष पश्चात् विक्रमका जन्म हुश्रा, ८ वर्ष तक बालकोड़ा की: १६ वर्ष तक भ्रमण किया और ५६ वर्ष तक राज्य किया। इस प्रमाण के अनुसार विक्रमका जन्म वीर निर्वाण सं० ४७० में हुआ। अतः ( ४६२-४७० = २२ ) विक्रमके जन्मसे २२ वर्ष पीछे सुभद्रा. चार्यका अन्त हुआ । तत्पश्चात् भद्रबाहु द्वितीय पट्टपर बैठे। तथा १८ वर्षकी उम्र में विक्रमका राज्यारोहण हुश्रा । अतः (२२-१८% ४) विक्रमके राज्यके ४ वर्ष बीतनेपर द्वितीय भद्रबाहु पहासीन हुए । विक्रम
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