Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
प्राचार्य काल गणना
३५३ धर्म प्रचलित था। शायद इसीसे पुराणों में महापद्म नन्दके विषयमें लिखा है कि 'अबसे शूद्र राजा होंगे। अस्तु, ___ इसके सिवाय प्राचीन दि० जैन ग्रन्थ तिलोयपरणतिमें लिखा है कि 'मुकुटधारी राजाओंमें अन्तिम राजा चन्द्रगुप्तने जिन दीक्षा धारण की। इसके पश्चात् मुकुटधारियोंने दीक्षा ग्रहण नहीं की। ___ यह प्राचीन उल्लेख भी इस बातको प्रमाणित करता है कि चन्द्रगुप्त नामक राजाने जिन दीक्षा धारण की थी। उसके पश्चात् किसी राजाने जिन दीक्षा धारण नहीं की। यह उल्लेख भी हरिषेण कथाकोश और श्रवणवेलगोलाके शिलालेखोंमें उल्लिखित चन्द्रगुप्तका ही निर्देशक है, क्योंकि उस एक चन्द्रगुप्तके सिवाय किसी अन्य चन्द्रगुप्तके जिन दीक्षा धारण करनेका कोई संकेत नहीं है, और वह चन्द्रगुप्त भद्रबाहु श्रुतकेवलीका लघु समकालीन मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ही है।
तथा ति०प० में उक्त गाथा ऐसे प्रकरणसे सम्बद्ध है जिसका सम्बन्ध भगवान महावीरके निर्वाण पश्चात् होनेवाली आचार्यके परम्परासे है। उस प्रकरणमें सबसे प्रथम भगवान् महावीरके १-महानन्दिसुतश्चापि शूद्रायां कलिकांशजः ।
उत्पत्स्यते महापद्मः सर्वक्षत्रान्तको नृपः। ततः प्रभृति राजानो भविष्याः शूद्रयोनयः । एकराट् स महापद्मो एकच्छत्रो भविष्यति ॥
-मत्स्य पु०, २७१ अ०। २-'मउडधरेसु चरिमो जिणदिक्खं धरदि चंदगुत्तो य । तत्तो मउडधरादु पव्वज्जं णेव गेण्हति ।।१४८१॥
-ति० ५०, १०४।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org