Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
प्राचार्य काल गणना है। सभी जैन महावीर निर्वाण और विक्रमके मध्यमें ४७० वर्षका अन्तर माननेमें एकमत हैं। तथा शक राजासे ६०५ वर्ष पूर्व वीर निर्वाण होने में भी सबका ऐकमत्य है। अतः विक्रम सम्वत्से ४७० वर्ष, शकसम्वत् से ६०५ वर्ष और ईस्वीसन से ५२७ वर्ष पूर्व वीरका निर्वाण मानना ही समुचित है।
____आचार्य काल गणना जैन ग्रन्थों में जैसे वीर निर्वाणके पश्चात् होनेवाले प्रमुख गजवंशोंकी काल गणना दी है वैसे ही तत्पश्चात् होनेवाले महा. वीरके प्रमुख शिष्य-प्रशिष्योंकी भी परंपराका उल्लेख कालक्रमसे किया है।
दिगम्बर जैनोंके त्रिलोक प्रज्ञप्ति, धवला, जय धवला आदि ग्रन्थों और पट्टावलियोंमें तथा श्वे जैनोंकी स्थविरावली और पट्टावलियोंमें उसका वर्णन पाया जाता है।
दि० जैनोंके अनुसार भगवान महाबीरके निर्वाणके पश्चात् ६२ वर्ष में तीन केवली हुए और तत्पश्चात् १०० वर्षमें ५ श्रुतकेवली हुए।
ति०प० में लिखा है-जिस दिन वीर प्रभुका निर्वाण हुआ १-'जादो सिद्धो वीरो तद्दिवसे गोदमो परमणाणी ।
जादो तस्मि सिद्ध सुधम्मसामी तदो जादो ॥१४७६।। तम्मि कदकम्मणासे जंबूसामित्ति केवली जादो । तत्यवि सिद्धिपवरणे केवलिणो णस्थि अणुबद्धा ॥१४७७॥ वासट्ठी वासाणि गोदमपहुदीण णाणवंताणं । धम्मपयट्टणकाले परिमाणं पिंडरूवेण ॥१४७८॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org