Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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वीर निर्वाण सम्वत्
३३५ . अर्थात् उदयीके अन्त और चन्द्रगुप्त मौर्यके राज्याभिषेकके बीचमें जायसवाल जीके अनुसार ४७-३२५ = १४२ वर्षका काल गणनाके अनुमार भी महावीरके निर्वाणसे उदायीके राज्यान्त तक का काल ६० वर्ष बतलाया है । अतः ५२७ ई० पू० में ६० वर्ष घटानेसे ४६७ ई० पू० काल पाता है । पाली ग्रन्थोंमें नन्दवर्धनके अव्यवहित पूर्वमें दो राजाओंके नाम और दिये हैं, जो पुराणों में नहीं हैं। वे नाम हैं अनुरुद्ध और मुण्ड । अनुरुद्धका राज्यकाल नौ वर्ष और मुण्डका राज्यकाल ८ वर्ष बतलाया है। अत: उदायी के पश्चात् कालक्रम इस प्रकार बैठता है।
अनरुद्ध ६ वर्प. ४६७-४५८ ई० पू० मुण्ड ८ , ४५८-४४६ ,
नन्दवर्धन ४० वर्ष, ४४६-४०९ ,, पुराणों में नन्दोंके सौ वर्ष बतलाये हैं । जिनमें नन्दवर्धनके ४० वर्ष और महानन्दके ४३ वर्ष है । १७ वर्ष शेष रहते हैं । जायसवाल जीने अनुरुद्ध और मुण्डको भी नन्दोमें सम्मिलित करके ९-८% १७ वर्ष पूरे किये हैं । क्योंकि जैन अनुश्रुति के अनुसार मगध में उदायीके पश्चात् नन्दोंका राज्य हुआ था । अनुरुद्ध और मुण्ड में से किसी एक को नन्द. वर्धन के नीचे रख देनेसे नन्दवर्धनका राज्याभिषेक काल ४५८ ई० पू० श्रा जाता हैं। यदि अनुरुद्ध और मुण्ड दोनोको नन्दवर्धन के पश्चात् रख देते हैं तो जैन और पौराणिक अनुभूतियाँ अापसमें मिल जाती हैं, जो उदायीके पश्चात् नन्दोंका. राज्य बतलाती हैं। किन्तु ऐसा करने से ४५८ ई० पू० में नन्दवर्धन के राज्यका नौवां वर्ष होता है । अतः अनुरुद्ध और मुण्ड दोनोंको नन्दवर्धन के पश्चात् न रखकर एक को ही रखना पर्याप्त है । इस तरहसे श्री जायसवालजीने उदायोके पश्चात् अनुरुद्ध और मुण्ड में से एकको रखकर तथा उसके पश्चात् नन्दवर्धनको रखकर ई० पू०
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