Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० पूर्व पीठिका अन्तर है। इसमें पालकवंश अथवा उदयी तकके ६० वर्ष जोड़ देनेसे वार निर्वाण और चन्द्रगुप्त मौर्यके राज्याभिषेकका अन्तर २०२ वर्ष आता है। अर्थात् वीर निर्वाणसे २०२वें वर्ष में चन्द्र. गुप्त मौर्यका राज्याभिषेक हुआ। किन्तु जैन ग्रन्थों में वीर निर्वाण से (६०+१५५= २१५ ) बर्ष पश्चात् चन्द्रगुप्तके राजा होनेका निर्देश है। अतः १२ वर्षका अन्तर स्पष्ट है और इसके अनुसार ५२७-२१५३१२ ई० पू० में चन्द्रगुप्तका राज्याभिषेक होना चाहिये। __ इतिहासके प्रेमियोंसे यह बात छिपी हुई नहीं है कि चन्द्रगुप्त मौर्यके राज्याभिषेकके काल को लेकर भी इतिहासज्ञामें मतभेद है।
और वह मतभेद भी १३-१४ वर्षका ही है । अर्थात् ३२६-२५ ई. पूर्वसे लेकर ३१२ ई० पूर्व तकके बीचमें चन्द्रगुप्त सिहांसन पर बैठा, यह सुनिश्चित रीतिसे माना जाता हैं। अतः महावीर निर्वाणसे २१५ वर्ष पश्चात् मौर्यों का राज्य होनेका जैन निर्देश सर्वथा गलत नहीं कहा जा सकता। और इसलिये इस दृष्टिसे भी प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत् ही ठीक प्रतीत होता है।
असल में जैनग्रन्थों में महावीर निर्वाणके पश्चात् होनेवाले राजवंशोंकी कालगणना तो दो है किन्तु उन राजवंशोंमें होनेवाले राजाओंका न तो नाम दिया है और न प्रत्येकका राज्यकाल ही दिया है। अतः पुराणों और वौद्धग्रन्थों में दी गई राजकाल गणनाके साथ उनका समीकरण कर सकना शक्य नहीं है। फिर भी इतना सुनिश्चित है कि वीर निर्वाणके पश्चात्की जो राज्यकाल गणना दी है, प्रचलित वीर निर्वाण सम्वत् उसके अविरुद्ध ४५८ नन्दवर्धनका राज्याभिषेक माना और उसे ही नन्द सम्वत्का प्रवर्तक बतलाया।
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