Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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० सा० इ० पूर्व पीठिका राज प्रद्योतका काल इससे बहुत अधिक होना चाहिये। जैन और बौद्ध परम्पराके अनुसार चण्ड प्रद्योत किम्बसारका समकालीन था । तथा वह अजातशत्रुका भी समकालीन था। पुगणोंके अनुसार बिम्बसारका राज्यकाल २८ वर्ष और अजातशत्रुका २७ वर्ष था। पुराणोंके अनुसार अजातशत्रुका उत्तराधिकारी दर्शक था। भासकी स्वप्नवासवदत्तासे इसका समर्थन होता है। उससे प्रकट होता है कि मगधपर दर्शकके राज्यके प्रारंभिक वर्षों में अवन्तिमें चण्ड प्रद्योत महासेन राज्य करता था। इन सब बातों को दृष्टिमें रखते हुए चण्डप्रद्योतका सुदीर्घ काल तक अवन्तिमें राज्य करना सिद्ध होता है। जब कि पौरणिक प्रद्योतका राज्यकाल २३ वर्षा था।' : जल नि० उ. रि० सो०, जि०७ पृ० ११० ) - जैनाचार्य हेमचन्द्रके परिशिष्ट पर्वसे पता चलता है कि उज्जयिनीके राजा पालकके समयमें मगधके सिंहासनपर श्रेणिक पुत्र कुणिक ('अजातशत्रु) और कुणिकके पुत्र उदायीका क्रमशः राज्य रहा है । उदायीके निस्सन्तान मर जाने पर उसका राज्य नन्दको मिला। दक्खिनी बौद्ध अनुश्रुतिमें भी अजातशत्रु के ठीक बाद उदायीका राज्य बताया है। दीपवंशमें उंदपीके बाद अनुरुद्ध मुरंड और तब नागदासक है । उत्तरी बौद्ध अनुश्रुतिके ग्रन्थ दिव्यावदानमें मुण्डके बाद काकवणिका नाम है । परन्तु पुराणोंमें अजातशत्रु और उदपीके बीच दर्शक है। श्री जायसवालका कहना था कि नागदासक = दर्शक शिशुनाग ( शैशुनाक ) में शिशुनाग खाली विशेषण है । यह विशेषण लगाने की आवश्यकता उस समय इसलिये थी कि उसके समकालीन विनय पामोक्ख ( बौद्ध संघके चुने हुए मुखिया ) का नाम भी दर्शक था। काकवणि भी दर्शकका ही विशेषण है, क्योंकि
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