Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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वीर निर्वाण सम्बत् . ३२१ अवन्ती के राजवंशोंमें इस प्रकारका व्यतिक्रम नया नहीं है और उसको लेकर इतिहासजोंमें ऊहापोह होता आया है।
श्री जायसवाल जी का कहना है कि 'मगधने जब अवन्तिको जीता तो अवन्तिका वृत्तान्त प्रसंगवश मगधके इतिहासमें आया। यह वृत्तान्त मूल पाठमें एक कोष्ठक में या पाद टिप्पणीके रूप में पढ़ा जाता था। उसके अन्त में यह पाठ था
स ( त ) त्सुतो नन्दिवर्धनः । हत्वा तेषां यशः कृत्स्नं शिशुनाको भविष्यति ।। यहाँ शिशुनाकका अर्थ था शैशुनाक-शिशुनाक वंशज और वह नन्दिवर्धनका विशेषण था। किन्तु बादमें पिछले लेखकों
और प्रतिलिपिकारोंने यह न समझकर कि इसे कोष्ठकमें पढ़ना चाहिये, नन्दिवर्धनको प्रद्योतवंशका अन्तिम राजा तथा शिशुनाक का अर्थ पहला शिशुनाक राजा समझकर प्रद्योतांशको मगधमें शिशुनाकोंका पूर्ववर्ती मान लिया, और उनके वृत्तान्तको बार्हद्रथों और शैशुनाकोंके बीच रख दिया ।' पार्जीटरने भी इस स्पष्ट गलतीको सुधार कर प्रद्योतोंके वृत्तान्तको पुराण पाठमें मगध के वृत्तान्तसे अलग रख दिया है। और इस तरह से अब यह विषय प्रायः निर्विवाद माना जाता है। ( भा० इ० रू., जि०, १ पृ० ४६६)।
अवन्तिराज प्रद्योत 'प्रायः' इस लिये कि कोई कोई विद्वान् अवन्तिके प्रद्योतोंसे मगधके प्रद्योतोको भिन्न मानते है। दोनोंको एक माननेमें उनकी एक आपत्ति इस प्रकार है
'पुराणोंमें मगधके राजाके रूपमें जिस प्रद्योतका वर्णन है उसका राज्यकाल पुराणों के अनुसार २३ वर्ष है । किन्तु अवन्ति
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