Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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वीर निर्वाण सम्वत्
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और अन्य जैनग्रन्थकारों के अनुसार ८८ + १२ = १०० वर्ष होता है ६५ या १५५ वर्ष नहीं होता । इस श्राशङ्काका उत्तर यह है. जैसा कि जायसवाल जीने ( ज० वि० उ० रि सो०, जि०१ ) स्पष्ट किया है कि जैनग्रन्थकारोंने श्रज उदयीके वंशजोको भी नन्दराजा मान लिया है । नन्दिने मगधके राज्य में अवन्तिको मिलाया इससे उसे नन्दिवर्धन कहा है । उसका मूल नाम नन्द था, नन्दि नहीं था । भविष्य पुराणमें नन्दवर्धन नाम है । इसी तरह नन्दिवर्धनके उत्तराधिकारी महानन्दिका नाम भी महानन्द था । भविष्य पु० में उसे नन्द कहा है। तथा नवनन्दका अर्थ नये नन्द था । जो बादको नौ नन्दके रूपमें माना जाने लगा । तथा उन नौ नन्दोंने क्रमशः राज्य किया, यह मान लेना स्वाभाविक ही था। इस तरहसे नन्दोंके वास्तविक राज्यकालमें बहुत वर्षों की वृद्धि होगई ।
पुराणों के अनुसार नन्दिवर्धनसे लेकर अन्तिम नन्द तकका कुल राज्यकाल - १२३ वर्ष है । इनमें से जायसवाल जी २८ + १२ : ४० वर्ष नवनन्दोंके और ४० + ४३ = ८३ वर्ष पूर्व नन्दोंके मानते हैं । पूर्व नन्दों में एक नन्दिवर्धन था और दूसरा था महानन्दी, नन्दिवर्धनका राज्यकाल ४० वर्ष था और महानन्द का ४३ वर्ष ।
श्री जायसवाल ने लिखा है कि पालक के ६० वर्षके पश्चात् जैनकाल गणना में नन्दोंके १५५ वर्ष बतलाये हैं। पुराणों में नन्दों का राज्य (४० + ४३ + २८ + १२) १२३ वर्ष बतलाया है । अतः
( १५५ - १२३ शेष ३२ वर्ष उदायीके लेनेसे १५५ वर्ष पूरे हो जाते । (ज० वि० उ०रि० सो०, जि० १, पृ० १०२ )
श्री जायसवाल जीने ३२ वर्ष जोड़कर जैनकाल
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नन्दोंके १२३ वर्षों में उदायीके राज्यके गणना में बतलाये नन्दोंके १५५ वर्षो
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