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________________ वीर निर्वाण सम्वत् ३३१ और अन्य जैनग्रन्थकारों के अनुसार ८८ + १२ = १०० वर्ष होता है ६५ या १५५ वर्ष नहीं होता । इस श्राशङ्काका उत्तर यह है. जैसा कि जायसवाल जीने ( ज० वि० उ० रि सो०, जि०१ ) स्पष्ट किया है कि जैनग्रन्थकारोंने श्रज उदयीके वंशजोको भी नन्दराजा मान लिया है । नन्दिने मगधके राज्य में अवन्तिको मिलाया इससे उसे नन्दिवर्धन कहा है । उसका मूल नाम नन्द था, नन्दि नहीं था । भविष्य पुराणमें नन्दवर्धन नाम है । इसी तरह नन्दिवर्धनके उत्तराधिकारी महानन्दिका नाम भी महानन्द था । भविष्य पु० में उसे नन्द कहा है। तथा नवनन्दका अर्थ नये नन्द था । जो बादको नौ नन्दके रूपमें माना जाने लगा । तथा उन नौ नन्दोंने क्रमशः राज्य किया, यह मान लेना स्वाभाविक ही था। इस तरहसे नन्दोंके वास्तविक राज्यकालमें बहुत वर्षों की वृद्धि होगई । पुराणों के अनुसार नन्दिवर्धनसे लेकर अन्तिम नन्द तकका कुल राज्यकाल - १२३ वर्ष है । इनमें से जायसवाल जी २८ + १२ : ४० वर्ष नवनन्दोंके और ४० + ४३ = ८३ वर्ष पूर्व नन्दोंके मानते हैं । पूर्व नन्दों में एक नन्दिवर्धन था और दूसरा था महानन्दी, नन्दिवर्धनका राज्यकाल ४० वर्ष था और महानन्द का ४३ वर्ष । श्री जायसवाल ने लिखा है कि पालक के ६० वर्षके पश्चात् जैनकाल गणना में नन्दोंके १५५ वर्ष बतलाये हैं। पुराणों में नन्दों का राज्य (४० + ४३ + २८ + १२) १२३ वर्ष बतलाया है । अतः ( १५५ - १२३ शेष ३२ वर्ष उदायीके लेनेसे १५५ वर्ष पूरे हो जाते । (ज० वि० उ०रि० सो०, जि० १, पृ० १०२ ) श्री जायसवाल जीने ३२ वर्ष जोड़कर जैनकाल Jain Educationa International नन्दोंके १२३ वर्षों में उदायीके राज्यके गणना में बतलाये नन्दोंके १५५ वर्षो For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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