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________________ ३३२ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका की पूर्ति की है। और पालकके ६० वर्षके पश्चात् उदायीका राज्याभिषेक माना है। किन्तु तिलोयपएणति, तित्था० पइन्नय आदि दिगम्बर तथा श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें महावीर निर्वाणके दिन अवन्तीकी गद्दीपर अभिषिक्त पालकका राज्यकाल ६० वर्ष बतलाया है और हेमचन्द्राचार्यने अपने परिशिष्ठ पर्वमें मगधकी गद्दीपर महावीरके निर्वाणसे उदायीके राज्यान्त तकका काल ६० वर्ष बतलाया है। अर्थात् पालक और उदायीका राज्यकाल एक साथ समाप्त हुआ। - हेमचन्द्रने लिखा ( परि० पर्व, सर्ग६, श्लो० १-६-२४३ ) है कि उदायीसे सभी राजा त्रस्त थे और उन्होंने यह समझ लिया था कि जब तक उदायी जीवित है हम सुखसे नहीं रह सकते । अवन्ती नरेश भी उनमेंसे एक था, अतः एक राज्यभृष्ट राजपुत्र अवन्ती नरेशसे सलाह करनेके बाद साधु बन गया और उसने छलसे उदायीका बध करदिया । उदायीके कोई सन्तान नहीं थी, अतः नाईपुत्र नन्द मगधके सिंहासन पर बैठा । __अवन्तीपतिसे अभिसन्धि करके उदायीका अपघात किया जाना यह सूचित करता है कि उदायीने पालकवंशकी भी वही दशाकी थी जो अन्य राजाओंकी की थी। और सम्भवतया यह घटना उदायीके जीवनके अन्तसे कुछ ही पूर्वकी होगी। इसीसे जहाँ महावीर निर्वाणके ६० वर्ष बीतने पर पालकवंशका अन्त हुआ वहीं मगधके राज्यासन पर उदायीका भी अन्त हो गया। उदायीके पश्चात् मगध के सिंहासनपर जिस नापित नन्दके बैठने का निर्देश हेमचन्दने किया है, वह अवश्य ही महापद्मनन्द है, उसीको पुराणोंमें शूद्राका पुत्र तथा यूनानी लेखकोंने नाईका पुत्र बतलाया है । उसीके कालको लेकर ६० वर्षका मतभेद पुराणोंमें है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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