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वीर निर्वाण सम्वत् अतः १५५ वर्षकी संख्या पूरी करनेके लिये पुराणोंके नन्दकालके १२३ में उदायीके ३२ वर्ष नहीं जोड़े जा सकते । श्री जायसवालने ईस्वी पूर्व ४६७ में उदायीका अन्त माना है सो वीरनिर्वाण ५२७ ई० पू० में ६० वर्ष घटानेसे वही समय आता है। उदायीके पश्चात् मगधके राज्यासन पर बैठनेवालोंकी तालिका तथा कालगणना जायसवाल' जीने इस प्रकार दी है।
१-जायसवालजीको उदायीके उत्तराधिकारियोंमें परिवर्तन करना पड़ा है उसका विवरण नीचे दिया जाता है
खारवेल के प्रसिद्ध हाथी गुफा वाले शिलालेखकी छठी पंक्ति में एक बाक्य इस प्रकार आया है-नन्दराज तिवस सतोघाटितम्'। इसका अर्थ डा० स्टेन कौनोंने किया-'नन्दराज के समय सं० १०३ में खोदी गई नहर' । कोनौके मतमें यह वीर सम्वत् है । और वे वीर निर्वाण सम्वत्का प्रारम्भ ईस्वी पूर्व ५२७ में मानते थे । अतः उनके मतसे ५२७-१०३ - ४२४ ई० पूर्वमें नन्दराजा था।
श्रीजायसवालने 'नन्दराज तिवस सतो घाटितम्' का अर्थ किया'नन्दराजके सं० १०३ में खोदी' उनका कहना है कि यदि 'नन्दराजने सं० १०३ में खोदी' यह अर्थ इष्ट होता तो 'तिवससत नन्दराज अोघाटित'' पाठ होता । ( ज० वि० उ० रि० सो०, जि० १३, पृ० २३३ )
अतः श्रीजायसवाल के अनुसार खारवेलके शिलालेखमें नन्दसंवत्का निर्देश है। उन्होंने कुछ प्रमाणों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि 'नन्द सम्बत् किसी समय प्रचलित था । अलवरुनीने लिखा है कि ईस्वी पूर्व ४५८ में एक सम्बत्का प्रारम्भ हुअा था। उसे वह हर्षवर्धन सम्वत् बतलाता है, और बतलाता है कि उसके समय तक ( ११वीं शताब्दी ई० ) मथुरा और कनौजमें वह सम्वत् प्रचलित था। किन्तु ४५८ ई.. पूर्व में हर्षवर्धन नामके किसी राजाका अस्तित्व प्रसिद्ध नहीं है । अतः
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