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जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका
४६७-४५८ ई० पू०
४५८-४१८ ""
४१८-४१० 39
मुण्ड महानन्दी महानदी के दो बेटे ३७४-३६६,
४०६-३७४ ""
महापद्मनन्द ३६६-३३८ ""
अनुरुद्ध नन्दिवर्धन
धननन्द चन्द्रगुप्त मौर्य
३३८-३२६ "" ३२६-२५-३०२ ई० पू०
यह हर्षवर्धन नन्दवर्धन होना चाहिये हैं । और प्राचीन भारत में ऐसा प्रयोग ४० २३८ ) ।
क्योंकि हर्ष और नन्द समानार्थक करनेकी प्रथा थी' । ( वही,
बेरुनीने इस सम्बत् को मथुरा और कन्नौज में प्रचलित पाया था । उसने लोगों से सुना कि इस सम्बत् के प्रवर्तक राजाने टैक्स घटा दिये थे क्योंकि उसे पृथ्वी में से बहुत धन मिला था । यह बात नन्दोंके गढ़े हुए कोशोंका स्मरण कराती है । यह प्रसिद्ध है कि नन्दवर्धनने प्रद्योतके अवन्तिराज्यको जीत लिया था और मथुरा अवन्तिराज्यका एक अंग था । अतः मथुरा और अन्तर्वर्ती कन्नौज नन्दवर्धन के मगध साम्राज्य के अन्तवर्गत थे । अतः उन प्रदेशों में नन्द सम्वत्का प्रचलित होना स्वाभाविक था ।
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उक्त प्रमाणों के आधार पर श्रीजायसवाल जीने खारवेल के शिलालेखमें निर्दिष्ट सम्बत्को नन्दसम्वत् माना जो ई० पूर्व ४५८ में प्रचलित किया गया था चार जिसका प्रचलनकर्ता नन्दवर्धन था ।
जायसवाल जीको नन्दिवर्धनका राज्याभिषेक काल ४५८ ई० पू० निर्धारित करने के लिये मगध राजवंशकी नामावली में भी थोड़ा सा उलट कर करना पड़ा । (ज० वि० उ०रि० सो० जि० १३, पृ० २३९ ) उन्होंने मगधराज उदायीका अन्तकाल ४६५ ई० पू० माना है । जैन
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