Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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नन्दोंके १५५ वर्ष अब हम नन्दोंकी ओर आते हैं।
जैन अनुश्रुतिके अनुसार अवन्तिमें पालकके राज्यके बाद नन्दोंने १५५ वर्ष राज्य किया । और जैनाचार्य हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्वके अनुसार उज्जैनीके राजा पालकके समयमें मगधके सिंहासनपर श्रेणिकपुत्र कुणिक (अजातशत्रु) और कुणिकके पुत्र उदायीका क्रमशः राज्य रहा । उदायीके निस्सन्तान मारेजाने पर उसका राज्य नन्दको मिला।
भागवत् , विष्णु, मत्स्य आदि पुराणोंमें अज अथवा उदयीके उत्तराधिकारीका नाम नन्दिवर्धन बतलाया है। और मगध तथा अवन्तिके राज्यवंशोंमें उसका नाम आता है। अतः नन्दीवर्धन मगध और अवन्ती दोनोंका राजा था।
पुराणों में पांच प्रद्योतोंका राज्यकाल १३८ वष बतलाया है, जिसमें २३ वर्ष प्रथम प्रद्योतके हैं। अवन्तिपति प्रद्योतके राज्यकालकी घटनाओं से यह स्पष्ट है कि उसका राज्यकाल २३ वर्ष से बहुत अधिक वर्षों तक रहा है अतः २३ बर्षकी गणना ठीक नहीं है। इसलिए ५३८ में से २३ वर्ष कमकर देनेपर पालकके राज्यभिषेकसे लेकर नन्दिवर्धनकी मृत्युतकका काल ११५ वर्ष होता है। ___ यह प्रसिद्ध है कि चन्द्रगुप्तमौर्यसे पहले नन्दोंका राज्य था। नन्दोंकी दो पीढ़ियोंने राज्य किया। पहली पीढीमें महापद्मनन्द था और दूसरी पीढ़ीमें उसके आठ बेटे। ये सब मिलकर नौ नन्द थे। वायु पु० में महापद्मनन्दका राज्यकाल ८ वर्ष दिया है, किन्तु बाकी पुराणोंमें महापद्मके ८८ वर्ष और दूसरी पीढ़ीके १२ वर्ष
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