Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका कुमारके साथ चण्डप्रद्योतकी जीवन घटनाये दी हैं वे घटित होना संभव नहीं है। उन घटनाओंको देखनेसे तो चण्ड प्रद्योत श्रेणिकका लघु समकालीन अवश्य होना चाहिये और ऐसी अवस्थामें उसका राज्यकाल २३ वर्ष संभव प्रतीत नहीं होता तथा उसकी अवस्थाको देखते हुए जैन ग्रन्थोंका यह कथन कि जिस दिन भगवान महावीरका निर्वाण हुआ उसी दिन अवन्तिके सिंहासन पर पालकका अभिषेक हुआ, सत्य प्रतीत होता है।
अतः जो विद्वान् पौराणिक प्रद्योतका राज्यकाल २३ वर्ष बतलाया जानेके कारण उसे अवन्तिपति चण्ड प्रद्योतसे पृथक मानते हैं, उनकी आपत्ति अनुचित नहीं कही जा सकती। किन्तु मगध के सिंहासन पर प्रद्योत नामके किसी राजाका होना, जिसके पुत्रका नाम भी पालक था, इतिहाससे प्रमाणित नहीं होता। अतः पुराणोंका उक्त कथन किसी भ्रान्तिका फल जान पड़ता है। और उस भ्रान्तिके बाज कुमारपाल प्रतिबोधमें दत्त चण्ड प्रद्योत को कथामें निहित हैं। अवश्य ही कुमा० प्र० १३ वीं शताब्दीकी रचना है किन्तु उसका आधार स्वतंत्र प्रतीत होता है। ___कथामें वर्णित घटना इस प्रकार है-चण्डप्रद्योतने एक वेश्याकी सहायतासे अभयकुमारको अपना बन्दी बना लिया । जब अभयकुमार उज्जैनीसे राजगृह लौटकर आया तो उसने भी चण्ड प्रद्योतको अपना बन्दी बनानेके लिए छलपूर्ण कौशलका सहारा लिया। वणिकका वेष धारण करके अभय दो गणिकाओंके साथ उज्जैनी पहुंचा और राजमार्गके एक आवासमें रहने लगा। एक दिन प्रद्योतकी दृष्टि उन गणिकाओं पर पड़ी। वह उनके रूपपर मुग्ध हो गया।
इधर अभयने प्रद्योतके समान एक व्यक्तिका नाम प्रद्योत रखकर उसे पागल बना दिया और उसे अपना भाई बतलाया ।
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