Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका
राजक
सूयक २१ ,
जनक
१२५
।
१२५ ,,
नन्दिवर्धन
नन्दिवर्धन
नन्दि
इस प्रकार विष्णु पु० में प्रद्योतवंशके ६ राजा गिनाये हैं। ओर मत्स्यमें ४ ही गिनाये हैं-प्रद्योतका नाम ही नहीं हैं । विष्णु और भागवत दोनों पुराणों में लिखा है कि ये पाँच प्रद्योत एक सौ अड़तीस वर्ष तक पृथ्वीका पालन करेंगे। इसके पश्चात् दोनों पुराणों में शिशुनागवंशी राजाओंका निर्देश है । मत्स्यमें लिखा है कि राजा सूर्यक वाराणसीमें अपने पुत्रको बैठाकर गिरिवन ( मगध ) में चला जायेगा।
तीनों पुराणों में तत्पश्चात् शिशुनागवंशी राजाओंकी नामावली इस प्रकार दी हैबिष्णु षु० भागबत पु०
मत्स्य पुराण शिशुनाभ शिशुनाग शिशुनाक ४० बर्ष काकवर्ण काकवणे
काकवर्ण क्षेत्रमा
क्षेत्रधर्मा क्षेत्रधोमा ३६ ,, क्षतौजा
क्षेमजित २४ , विधिसार ( बिम्बसार ) विधिसार विन्ध्यसन २८ .,
२६ .,
क्षेत्रज्ञ
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