Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका सामजस्य बैठ जाता है। अब हम वीर निर्वाणसे उत्तरकाल में होनेवाले विशिष्ट व्यक्तियोंके कालक्रमके साथ उसके सामञ्जस्य पर विचार करेंगे।
___महावीरके पश्चात्की राज्यकाल गणना
भगवान् महावीरके निर्वाण और चन्द्रगुप्त मौर्यके राज्याभिषेक का अन्तरकाल हेमचन्द्रने' १५५ वर्ष और जिनसेन' (७८३ ई०) तथा मेरुतुंगने ( १३०० ई०)२१५ वर्ष दिया है। जिनसेन और मेरुतुंग महावीरके निर्वाण और अवन्तीकी गद्दीपर पालकके राज्याभिषेकको समकालीन बतलाते हैं। जिनसेनके पूर्वज यति. वृषभने तथा मेरुतुंगके पूर्वज तित्थोगाली पइन्नय' के कर्ताने भी ऐसा ही लिखा है। जिनसेन और मेरुतुंगने उन्हींका अनुसरण किया है। - पालकके पिताका नाम प्रद्योत अथवा चण्डप्रद्योत था। मझिम निकाय ( पृ० ४५५) में लिखा है कि मगधराज अजातशत्रु राजा प्रद्योतके भयसे नगरको सुरक्षित कर रहा था। यह घटना बुद्धके निर्वाणसे पश्चात् की है। उक्त सभी जैन ग्रन्थोंमें पालकका राज्यकाल ६० वर्ष लिखा है । मेरुतुंगने विचार श्रेणीमें
१-एवं च श्री महावीरमुक्तेवर्षशते गते । पञ्चपञ्चाशदधिके चन्द्र. गुप्तोऽभवन्नृपः । ३३६।।- परि० ५०,८।
२-हरिवंश पु० ६० स०, ४८८-८६ श्लोक । ३-वि० श्रे० । ४-जक्काले वीर जिणो णिस्से यससंपयं समावण्णो । तक्काले अभिसित्तो पालयणामो अंतिसुदो ||१५०५||
-ति०प०, अ० ४ ॥ ५-'जं रयणि सिद्धिगो अरहा तित्थंकरो महावीरो ।
तं रयणिमवंतीए अभिसित्तो पालो राया ।।' ६-'पालकस्य राज्ञः षष्ठि (६०) वर्षाणि राज्यमभूत । तावता
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