Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका सुदीर्घकालमें उनका घटित होना जरा भी असंभव नहीं कहा जा सकता। ___ हाँ, जब महावीर अपने धर्म प्रचारके क्षेत्रमें अवतरित हुए तब बुद्ध वृद्ध हो चुके थे जब कि महावीर प्रौढवयमें पदार्पण कर चुके थे और इसलिए स्वभावतः उनमें कार्यक्षमता अधिक थी। बौद्ध पालि साहित्यमें महावीरका ही प्रबल प्रतिद्वन्दीके रूप में अधिक निर्देश मिलनेका यह भी एक कारण हो सकता है। अब इन महापुरुषोंके उक्त कालकी संगतिको अन्य समकालीन व्यक्तियोंके साथ भी मिलाकर देख लेना चाहिये।
बौद्ध पाली साहित्यमें बुद्धके विरोधी छै शास्ताओंमें मक्खलि गोशालका नाम भी आता है, जो महावीरका भी समकालीन था। भगवती सूत्रके अनुसार गोशालकने महावीरके जिन होनेसे दो वर्ष पूर्व ही अपनेको 'जिन' घोषित कर दिया था और महावीरके निर्वाणसे १६ वर्ष पूर्व उसकी मत्यु हुई। चूँकि महावीरको जिनत्वकी प्राप्ति ईस्वी पूर्व ५५७ में हुई, अतः गोशालक ईस्वी पूर्व ५५६ में 'जिन' हुआ और ईस्वी पूर्व ५४३ में उसकी मत्यु हुई। अर्थात बुद्धसे एक वर्ष पश्चात् उसका मरण हुआ। इस तरह 'जिन' होनेके पश्चात गोशालक भी १५ वर्ष तक प्रतिद्वंदी के रूपमें बुद्धके समकालमें विचरण करता रहा। अतः उसके कालकी संगति भी ठीक बैठ जाती है।
अब राजा श्रेणिक और तत्पुत्र अजातशत्रुको लीजिये। चूँ कि बुद्धका निर्वाण ई० पूर्व ५४४ में हुआ और उससे ८ वर्ष पूर्व अजातशत्रु मगधके राज्यासन पर बैठा। अतः ५५२ ई० पूर्नमें
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