Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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वीर निर्वाण सम्वत्
३०६ उसे सह न सके और उनके मुखसे गर्म लोहु निकल पड़ा अर्थात् मुँहसे रक्तका वमन हुआ।
बौद्ध पालि साहित्यमें वर्णित इस घटनाके ऊपर कतिपय बिद्वानोंने बहुत जोर दिया है। और उन्होंने इस घटनाको मरण सम्बन्धी उक्त घटनाके साथ जोड़कर यह कल्पना की है कि उपाली वाली घटनाके कुछ ही समय पश्चात् पावामें महाबीरका मरण हो गया।
किन्तु जाले चान्टियर आदिने इस बातको स्वीकार नहीं किया। उसके कारण निम्न प्रकार हैं-जैन उल्लेखोंके अनुसार जिस पावामें महावीर भगवानका निर्वाण हुआ था वह पावा पटना जिलेमें नालन्दाके पास है। किन्तु बौद्ध साहित्यमें जिस पावाका निर्देश है वह शाक्य भूमिमें है क्योंकि उस समय बुद्ध शाक्य देशके सामगाममें स्थित थे और चुन्द पावासे चलकर सामगाम आया था। अतः उक्त निर्देश प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। डा० जेकाबीने भी (से० बु० ई० जि० ४५, पृ० १६) यही बात लिखी है और उसे प्रामाणिक नहीं माना है। इसके सिवाय महाबीरके निर्वाणके पश्चात् ही जो उनके अनुयायी निग्रन्थों में लड़ाई झगड़ा होनेका उल्लेख किया है उसका भी समर्थन किसी जैन स्रोतसे नहीं होता। सम त दि० श्वे. जैन
१-जाल चापेन्टियरने महावीरके समयनिर्णय सम्बन्धी अपने लेख में ( इं० ए० जि० ४३ ) उक्त चर्चा करते हुए लिखा है कि स्पेंस हार्डीने 'मैन्युअल श्राफ बुद्धिज्म' में तथा वीगन्डेटने ( से० बु० ई. जि० १३, पृ. २५६ ) लिखा है कि उपालि के विरोध के कारण महाबीरका मरण हुआ। राहुल जीने म० नि० के अपने अनुवाद के टिप्पण में भी ( ४४१ पृ०, टि० २) यही बात लिखी है।
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