Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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वीर निर्वाण सम्वत्
३०७ वर्ष तक राज्य करना अक्षरशः प्रमाणित हो जाता है और उससे जैन शास्त्रोंमें वर्णित घटनाओंकी संगतिमें भी कोई अन्तर नहीं आता। किन्तु ऐसा करनेसे एक तो बुद्ध और श्रेणिकके बीचमें महाबंशमें जो ५ बर्षका अन्तर बतलाया है उसमें ५ बर्षकी. वृद्धि हो जाती है। दूसरे जैन ग्रन्थोंमें अभयकुमारकी उत्पत्ति के पश्चात् ही श्रेणिकको मगधके राज्यासनका स्वामी होना बतलाया है। अतः १५ बर्षको उम्रसे पहले देश निकाला, विवाह, पुत्रोत्पत्ति आदि घटनाओंका घटना सुसंगत प्रतीत नहीं होता । उसमें चार बर्णकी वृद्धि करनेसे एक ओर महावंशका यह कथन कि बुद्धसे बिम्बसार पाँच बर्ष छोटे थे, और दूसरी
ओर जैन ग्रन्थों में वर्णित श्रेणिकके बाल-जीवनकी घटनाएं सुसंगत बैठ जाती हैं।
अतः जैनोंमें परम्परासे प्रचलित बीर निर्वाण कालको और बौद्धोंमें परम्परासे प्रचलित बुद्ध निर्वाण कालको ही ठीक मान कर चलनेसे बुद्ध, महावीर, गोशालक, श्रेणिक, अभयकुमार और अजातशत्र आदिकी समकालीनता तथा जैन और बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित घटनाओंकी संगति ठीक बैठ जाती है।
उक्त घटनाओंके प्रकाशमें निर्धारित उक्त काल क्रमकी तालिका नीचे दी जाती है। साथमें तुलनाके लिये भी का० प्र. जायसवाल और मुनि कल्याण विजय जीके मत भी दिये जाते। नाम जन्म बोधिलाभ निर्वाण जायसवाल मुनि
कल्याणविजय महाबीर ५६ ५५७ ५२७ महा०नि० महा०नि०
ई० पू. ई० पू० ई० पू० ५४५ ई०पू० ५२८ ई० पू० बुद्ध ६.४ ५८८ ५४४ बु०नि० बु० नि०
ई० पू० ई० पू० ई० पू० ५४४ ई०पू० ५४४ ई०पू०
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