Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
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तथापि यथार्थताके विशेष निकट था। जनक यह बात उन ब्राह्मणोंसे कहकर तथा रथमें बैठकर चला गया। ब्राह्मणोंने इसे अपना अपमान समझा । तब याक्षवल्क्यने जाकर शंका निवारण की । तबसे जनक ब्राह्मण होगया । ___इससे प्रकट होता है कि शत० ब्रा० के काल तक वैदिक आर्य विदेह तक ही बढ़ सके थे। दक्षिण बिहार तथा बंगालमें ब्राह्मण धर्मका प्रसार ईस्वी सन् की तीसरी शताब्दीके मध्य तक हो सका था। इस तरह पूर्वीय भारतमें अपनी संस्कृतिको फैलानेमें वैदिक आर्यों को एक हजार वर्ष लगे। यद्यपि वह प्रवेश निश्चय ही उतना विस्तृत नहीं था (भा० इं० पत्रिका जि० १२, पृ० ११३)। ___कोसल और विदेहके साथ काशीको प्राधान्य भी उत्तर वैदिक कालमें मिला । अथर्ववेदमें प्रथम बार काशीका निर्देश मिलता है। काशीका कोशल और विदेह के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था। काशीके एक राजा धृतराष्ट्रको शतानीक सहस्राजित ने हराया था। वह अश्वमेध यज्ञ करना चाहता था किन्तु शतानीकने उसे हरा दिया। फलस्वरूप काशीवासियोंने यज्ञ करना ही छोड़ दिया। (पो० हि० एं। ई०, पृ. ६२)।
काशीराज ब्रह्मदत्त बौद्ध महागोविन्द सुत्तन्तमें भी काशीके राजा धतरट्टका निर्देश है, जो शतपथ० का धृतराष्ट्र ही प्रतीत होता है। उसे महा गोविन्द में भरतराज कहा है। डा० राय चौधुरीने लिखा हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि काशीके भरतवंशका स्थान राजाओंके एक नये वंशने ले लिया, जिनका वंश नाम ब्रह्मदत्त था । श्री
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