Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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भगवान् महावीर
२३३ बौद्ध महापरिनिव्वाण सुत्तों ( दी० नि०, पृ० ११७) लिखा है-'एक समय भगवान बुद्ध राजगृहमें विहार करते थे। उस समय राजा मगध अजात शत्रु वैदेहीपुत्र वज्जीपर चढ़ाई करना चाहता था। वह ऐसा कहता थामैं इन ऐसे महद्धिक (= वैभवशाली ) ऐसे महानुभाव वज्जियोंको उच्छिन्न करूँगा, वज्जिोंका विनाश करूँगा, उन पर आफत ढाऊँगा।'
अजातशत्रुने बुद्धकी सलाह लेनेके लिये अपने मंत्रीको बुद्धके पास भेजा । बुद्ध ने कहा-१ - जब तक वज्जी सम्मतिके लिये बैठक करते रहेंगे, २--जब तक वज्जी एक हो बैठक करते हैं, एक हो उत्थान करते हैं, एक हो कर्तव्य करते हैं, ३-जब तक वज्जी अप्रज्ञप्त (= गैर कानूनी) को प्रज्ञप्त (= विहित ) नहीं करते, प्रज्ञप्त (=विहित ) का उच्छेद नहीं करते, ४-जब तक वज्जी वृद्धोंका आदर सत्कार करते है, उनकी बात मानते हैं, ५-जब तक वज्जी कुल स्त्रियों, कुल कुमारियोंके साथ जबर्दस्ती नहीं करते, ६-जब तक वज्जी अपने चैत्योंका सम्मान करते हैं और ७-जब तक वज्जी अर्हतोंको पूजते है, जब तक ये सात अपरिहाणीय धर्म वज्जियोंमें रहेंगे तब तक वज्जियोंकी वृद्धि ही होगी, हानि नहीं होगी। जातियाँ सम्मिलित थीं । जिनमें लिच्छवि, वजी ज्ञात्रिक और विदेह भी थे । इस संगठनको वजियों अथवा लिच्छवियोंका गणतंत्र कहा जाता था। क्योंकि नौ जातियों में से वजि और लिच्छवि सबसे प्रमुख थे। इन नौ लिच्छवि जातियों में नौ मल्लकी जातियाँ और काशी कौशलके १८ गण राजा सम्मिलित थे । ( जै० ना० इ० पृ०८५-८६)।
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