Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका उक्त विवरणसे लिच्छवियोंके सुदृढ़ संगठन पर प्रकाश पड़ता है।
प्रसङ्गवश भगवान महावीरके वंशका अन्य राजवंशों से सम्बन्ध बतलाना अनुचित न होगा क्योंकि अन्वेषकोंका विश्वास है कि महावीर और बुद्धने अपने शासनका प्रचार करनेके लिये वंशानुगत सम्बन्धोंका पूरा-पूरा लाभ उठाया था। और भारतके मुख्य राजवंशोंके साथ उनका सम्बन्ध होना भी उनकी सफलताका एक कारण अवश्य था। ____जहाँ तक खोजोंसे पता चलता है महावीरके पितृकुलकी अपेक्षा मातृकुलका राजवंशानुगत सम्बन्ध अधिक व्यापक और अधिक प्रभावक था।
उनका नाना चेटक लिच्छवि गणतंत्रका प्रधान था। इस गणतंत्र में आठ या नौ जातियाँ सम्मिलित थीं जिनमें लिच्छवि, वज्जी, ज्ञात्रिक और विदेह भी थे। यतः इन नौ जातियों में लिच्छवि और वज्जी सबसे प्रमुख थे। अतः यह संगठन लिच्छवियों अथवा वज्जियोंका गणतंत्र कहा जाता था। ये नौ लिच्छवि जातियाँ नौ मल्लकियों और काशी कोसलके अट्ठारह गणराजाओं से सम्बद्ध थी।
जैन निरयावली सूत्रमें लिखा है कि जब चम्पाके राजा कुणिक (अजात शत्रु ) ने एक शक्तिशाली सेनाके साथ चेटकपर आक्रमण करनेकी तैयारी की तो चेटकने काशी कोशल के १८ गणराजाओं, मल्लकियों और लिच्छवियोंको बुलाकर
१-से० वु० ई०, जि० २२, प्रस्ता० पृ० १३ । २-० ना० इ० पृ० ८५। ३-'नव मल्लइ नव लेच्छह, कासी-कोसलगा अट्ठारसवि गण-रायाणो'--भ० सू०."।
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