Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका दिगम्वरीय' उल्लेखके अनुसार, उनतीस वर्ष, पाँचमास और बीस दिन तक चार प्रकारके अनगारों और बारह गणों अर्थात् सभाओंके साथ बिहार करके भगवान महावीर पावामें पधारे और योग निरोधके द्वारा शेष चार अघाति कर्मोको भी नष्ट करके कार्तिक मासकी कुष्ण चर्तुदशीके दिन स्वाति नक्षत्रके रहते हुए रात्रिके समय निर्वाणको प्राप्त हुए। ____ 'श्वेताम्बरीय उल्लेखके अनुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को स्वाति नक्षत्रके रहते हुए रात्रिके पिछले पहरमें महाबीर का निर्माण हुआ। इस तरह दोनों मान्यताओंमें २४ घंटोंका अथवा एक दिन रात का अन्तर है।
वीरप्रभुका निर्वाण होनेके पश्चात् देवताओंने आकर मोक्ष कल्याणकका उत्सव मनाया और दीपोंकी मालिका संजोई। उस समय उस दीपमालिकासे पावा नगरीका समस्त आकाश आलोकित हो उठा। काशी और कोशलके अट्ठारह राजाओं, नौ लिच्छवियों और नौ मल्लोंने भी पावामें पधार कर दीप मालिकाका महोत्सव मनाया और कहा; क्योंकि केवल ज्ञानरूपी प्रकाश आज अस्त हो गया अतः हमें भौतिक प्रकाश करना चाहिये। जैन साहित्य के उल्लेखानुसार भारत में कार्तिक कृष्ण अमावस्याके दिन प्रति वर्ष जो दीपावली महोत्सव मनाया जाता
१-'कत्तियमावसि सियमा समाइ भणिया जिणिंदाणं ।। ३१० ।।
-अभि० रा०, पृ० २२६६ । २-ततस्तु लोकः प्रतिवर्षमादरात् प्रसिद्ध दीपालिकयाऽत्र भारते । समुद्यतः पूजयितु जिनेश्वरं जिनेन्द्रनिर्वाणविभूतिभक्तिभाक् ।
-हरि० पु० ६६ सर्ग श्लो० २१
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