Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
२६०
जै० सा० इ० पूर्व पीठिका ६० वर्ष घटानेका सुझाव दिया था, उसे भूल भरा बतलाते हुए जायसवालने लिखा था कि हेमचन्द्रने अपनी कालगणनामें जो पालकके ६० वर्ष छोड़ दिये हैं यह उनकी एक मोटी भूल है; क्योंकि यदि हम प्रारम्भके ६० वर्षोंको छोड़ देते हैं तो चन्द्रगुप्त, स्थूल भद्र, सुबाहु और भद्रबाहुकी समकालीनतामें विरोध आता है और प्रो० जेकोवीने हेमचन्द्रकी इस भूल को अपनी गणनाका आधार बनाया है और ऐसा करने में पाली लेखोंमें आये हुए अशोकके भूलभरे समयका और उसके ऊपर बाँधी गई निर्वाण काल गणना का उनके ऊपर बहुत प्रभाव पड़ा है। ___पाली लेखोंमें दिये हुए समयके ऊपर बाँधी गई गणनासे उन लेखोंमें लिखी हुई अशोकके अभिषेककी तारीख तथा पूर्व परम्परासे चली आती हुई तारीखके मध्यमें लगभग ६० वर्षका अन्तर है । हेमचन्द्राचार्यकी भूलसे जैन काल गणनामें भी ६० वर्ष छूट जानेसे इन दोनों गणनाओंकी एकता ने उक्त विद्वानोंके मतको बल दिया है। परन्तु प्रद्योतका पुत्र पालक, जो अजातशत्रुका समकालीन था, महावीर निर्वाणके दिन गद्दी पर बैठा, यह मानना स्वाभाविक और सप्रमाण है। हेमचन्द्राचार्यके कथनके अनुसार महावीर निर्माणके पश्चात् तुरन्त ही नन्दवंशका राज्य शुरू हुआ, यह मान्यता एकदम भूलभरी और अप्रामाणिक है'।
इस प्रकार प्रचलित निर्वाण सम्वत्में डा० याकोबी और जाल चापेन्टियरके द्वारा बतलाई गई ६० वर्षकी भूलको भ्रम पूर्ण बतलाते हुए स्व० जायसवालने १८ वर्ष बढ़ानेकी जो सम्मति दी उसका खुलासा इस प्रकार है
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org